Ranchi Rescue: रांची रेलवे स्टेशन पर 'ऑपरेशन आहट' के तहत तीन नाबालिग बचाए गए, तस्कर गिरफ्तार, अगरतला के ईंट भट्ठे में ले जाने की थी साजिश, 5000 रुपये में बेची जा रही थी जिंदगियां
रांची रेलवे स्टेशन पर आरपीएफ, नन्हे फरिश्ते और एआई-बी की संयुक्त कार्रवाई में एक मानव तस्करी रैकेट का खुलासा हुआ। गुमला जिले के तीन नाबालिग किशोरों को बचाया गया और आरोपी तस्कर जगतपाल उरांव गिरफ्तार हुआ। बच्चों को ईंट भट्ठे में काम दिलाने के नाम पर अगरतला ले जाया जा रहा था।
झारखंड, जो अपने खनिज संसाधनों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, दुर्भाग्यवश मानव तस्करी के लिए भी एक अहम ट्रांजिट पॉइंट बन चुका है। यहां के गरीब आदिवासी इलाकों के मासूम बच्चों को बेहतर जीवन का लालच देकर देश के दूसरे कोनों में बेच दिया जाता है। इसी खतरे को नजरअंदाज न करते हुए, रांची रेलवे स्टेशन पर रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने एक बड़ा और सफल ऑपरेशन चलाया है, जिसमें मानव तस्करी के एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है।
भारतीय इतिहास में बंधुआ मजदूरी और शोषण के कई दौर गुजर चुके हैं, लेकिन आधुनिक भारत में मानव तस्करी आज भी एक काले कारोबार के रूप में जारी है। आरपीएफ द्वारा चलाया गया 'ऑपरेशन आहट' इसी जघन्य अपराध के खिलाफ एक राष्ट्रीय प्रयास है, जिसकी सफलता ने तीन मासूम जिंदगियों को बर्बाद होने से बचा लिया है।
लोहरदगा-रांची मेमू पैसेंजर से उतरे तस्कर
आरपीएफ, नन्हे फरिश्ते संस्था और एआई-बी रांची की संयुक्त टीम ने पूर्व में मिली सूचना के आधार पर प्लेटफॉर्म 1A पर अपनी निगरानी तेज कर दी थी।
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संदिग्ध की पहचान: रविवार की शाम 6.34 बजे, जब लोहरदगा-रांची मेमू पैसेंजर ट्रेन (68040) प्लेटफॉर्म पर रुकी, तो टीम को एक संदिग्ध व्यक्ति तीन डरे-सहमे किशोरों के साथ उतरता हुआ दिखा। तीनों किशोर गुमला जिले के बिशुनपुर थाना क्षेत्र के रहने वाले थे।
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पूछताछ और हिरासत: संदिग्ध व्यक्ति पूछताछ में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया, जिसके बाद चारों को हिरासत में लेकर आरपीएफ पोस्ट ले जाया गया।
अगरतला के ईंट भट्ठे में ले जाने की थी योजना
हिरासत में लिए गए तस्कर और नाबालिगों से पूछताछ के दौरान मामले की गंभीरता सामने आई।
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मुख्य साजिशकर्ता: किशोरों ने बताया कि आयुष असुर नामक एक व्यक्ति उन्हें अगरतला (त्रिपुरा) के ईंट भट्ठे में काम दिलाने के बहाने ले जाने की योजना बना रहा था। आयुष ने उन्हें जगतपाल उरांव नामक दूसरे व्यक्ति के हवाले कर दिया था।
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5000 रुपये का सौदा: गिरफ्तार आरोपी जगतपाल उरांव (जो गुमला का ही रहने वाला है) ने पूछताछ में कबूल किया कि उसे एक अन्य व्यक्ति आदित्य प्रसाद ने इन बच्चों को देवघर जाने वाली ट्रेन में बैठाने के बदले 5000 रुपये देने का वाद किया था। यह खुलासा दर्शाता है कि कैसे गरीबी में पलने वाले बच्चों की जिंदगियां चंद हजार रुपये में बेची जाती हैं।
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आपराधिक इतिहास: सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि आरोपी जगतपाल ने यह भी स्वीकार किया कि वह पहले भी कई बार मानव तस्करी जैसी गतिविधियों में शामिल रहा है।
पुलिस और सुरक्षाबलों की इस सक्रियता से निश्चित रूप से एक बड़ा अपराध टल गया है, लेकिन अभी भी आयुष असुर और आदित्य प्रसाद जैसे मुख्य साजिशकर्ताओं की तलाश जारी है।
आपकी राय में, झारखंड जैसे मानव तस्करी से प्रभावित राज्यों से बच्चों को रेलवे के माध्यम से दूसरे राज्यों में ले जाने से रोकने के लिए आरपीएफ और रेलवे को कौन से दो सबसे कारगर तकनीकी उपाय करने चाहिए?
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