Tata Steel revolution in water management: स्मार्ट तकनीक से बचा 40% पानी, पर्यावरणीय समाधान का अद्भुत उदाहरण
जानें कैसे टाटा स्टील एफएएमडी ने स्मार्ट तकनीकों से 40% पानी की खपत कम की। पर्यावरणीय स्थिरता में उनकी अग्रणी पहल और जल संरक्षण के अद्वितीय प्रयासों के बारे में पढ़ें।
भुवनेश्वर, 27 नवंबर 2024 – जब बात प्राकृतिक संसाधनों के जिम्मेदार उपयोग की होती है, टाटा स्टील का फेरो एलॉयज एंड मिनरल्स डिवीजन (एफएएमडी) इसे एक नए स्तर पर ले जा रहा है। जल संकट से निपटने और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए, एफएएमडी ने स्मार्ट तकनीकों और प्रभावशाली समाधानों के साथ जल प्रबंधन में अद्वितीय पहल की है।
खनन उद्योग को अक्सर पानी की भारी खपत और संसाधनों पर दबाव के लिए आलोचना झेलनी पड़ती है। लेकिन टाटा स्टील इस धारणा को बदलने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। उन्नत तकनीकों के उपयोग से यह कंपनी जल संरक्षण के साथ-साथ अपनी पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को सशक्त बना रही है।
टाटा स्टील, जिसे 1907 में जमशेदजी टाटा ने स्थापित किया था, भारत के औद्योगिक विकास में एक मील का पत्थर है। अपनी स्थापना के बाद से ही, कंपनी नवाचार और पर्यावरणीय स्थिरता में अग्रणी रही है। आज, एफएएमडी की जल प्रबंधन पहल इसी विचारधारा की नवीनतम मिसाल है। यह पहल केवल संसाधनों की बचत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह खनन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में भी सहायक है।
एफएएमडी ने जोड़ा फेरो एलॉय प्लांट में रीयल-टाइम मॉनिटरिंग और डेटा एनालिटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाया है, जिससे 40% तक पानी की खपत में कमी आई है।
कैसे काम करती है यह तकनीक?
-
आईओटी सेंसर और डेटा एनालिटिक्स: यह तकनीक पानी के प्रवाह, वितरण और खपत की रीयल-टाइम निगरानी करती है।
-
डिजिटल वाटर सर्किट: फ्लक्सजेन सस्टेनेबल टेक्नोलॉजीज के साथ साझेदारी कर, एफएएमडी ने अपने जल प्रबंधन सिस्टम को पूरी तरह से डिजिटल बनाया है।
-
इंटरएक्टिव वेब और मोबाइल ऐप्स: यह ऐप्स रीयल-टाइम डेटा प्रदान करते हैं, जिससे सुधारात्मक कदम तुरंत उठाए जा सकते हैं।
परिणाम:
-
पानी की बर्बादी पर प्रभावी नियंत्रण।
-
सीमित जल स्रोतों पर निर्भरता में कमी।
-
लागत में उल्लेखनीय बचत।
एफएएमडी ने जल की गुणवत्ता और पुन: उपयोग सुनिश्चित करने के लिए अत्याधुनिक एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) स्थापित किए हैं।
सुकिंदा क्रोमाइट माइन:
-
4500 केएल/घंटा की क्षमता वाला ईटीपी औद्योगिक अपशिष्ट और सतही बहाव को प्रभावी रूप से शुद्ध करता है।
-
पानी का उपयोग बागवानी और धूल नियंत्रण के लिए किया जाता है।
सरुआबिल और कमरदा क्रोमाइट माइन:
-
क्रमशः 380 केएल/घंटा और 1200 केएल/घंटा क्षमता के ईटीपी स्थापित।
-
शुद्ध पानी ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (ओएसपीसीबी) के सख्त मानकों का पालन करता है।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी):
सुकिंदा क्रोमाइट कॉलोनी में 1000 केएलडी क्षमता वाला एसटीपी स्थापित किया गया है, जिसमें ग्रिट चेंबर, एयरेशन नेटवर्क, और अन्य अत्याधुनिक तकनीकें शामिल हैं। यह जल निकासी को स्वच्छ और पुनः उपयोग योग्य बनाता है।
एफएएमडी की खदानों में सेंसर-आधारित एनालाइजर से जुड़ी एक उन्नत डेटा संचार प्रणाली स्थापित की गई है।
-
मुख्य विशेषताएं:
-
Cr+6, कुल निलंबित ठोस (टीएसएस), और pH स्तर की सटीक जानकारी।
-
एनएबीएल-मान्यता प्राप्त थर्ड-पार्टी एजेंसी द्वारा निगरानी।
-
-
लाभ:
-
पारदर्शिता में वृद्धि।
-
प्रदूषण नियंत्रण में सुधार।
-
जल प्रबंधन में कुशलता।
-
एफएएमडी के एक्जीक्यूटिव-इन-चार्ज पंकज सतीजा कहते हैं:
“पानी एक अमूल्य और सीमित संसाधन है। प्रभावी जल प्रबंधन न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि यह हमारे पर्यावरणीय लक्ष्यों का भी अभिन्न हिस्सा है। हम तकनीक का उपयोग कर जल संरक्षण में नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं।”
लागत बचत और पर्यावरणीय संरक्षण:
जोड़ा फेरो एलॉय प्लांट में स्क्रबर तालाब के पानी और अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग कर, 40% पानी की खपत को कम किया गया है। यह पहल न केवल लागत में कमी लाती है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को भी कम करती है।
What's Your Reaction?