Bihar Boycott Drama: नीतीश की इफ्तार पार्टी से उलेमा क्यों हुए नाराज? बड़ा सियासी उलटफेर!
बिहार में सीएम नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का उलेमाओं ने बायकॉट कर दिया। वजह वक्फ संशोधन बिल पर उनकी चुप्पी मानी जा रही है। इस सियासी घटनाक्रम के पीछे की पूरी कहानी जानिए।

बिहार की राजनीति में इफ्तार पार्टी सिर्फ रोज़ेदारों के लिए नहीं, बल्कि बड़े राजनीतिक दांव-पेंच का भी अखाड़ा बन चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी इस बार सुर्खियों में रही, लेकिन वजह कोई खुशखबरी नहीं थी! बिहार के उलेमा समुदाय ने इस पार्टी का बायकॉट कर दिया। सवाल उठता है कि आखिर मुस्लिम संगठनों ने ऐसा कड़ा फैसला क्यों लिया? क्या नीतीश कुमार का एनडीए से जुड़ाव उनकी राजनीतिक पकड़ को कमजोर कर रहा है?
उलेमाओं की नाराजगी का असली कारण क्या है?
बिहार में मुसलमानों की राजनीति हमेशा से चर्चा में रही है। लेकिन इस बार मामला इफ्तार पार्टी तक आ गया। वक्फ संशोधन बिल को लेकर बिहार के उलेमाओं में जबरदस्त नाराजगी थी। उनका कहना था कि नीतीश कुमार इस बिल का विरोध नहीं कर रहे हैं, जबकि यह मुस्लिम समाज के अधिकारों पर असर डाल सकता है। उलेमाओं ने साफ कह दिया कि अगर नीतीश कुमार एनडीए में रहते हुए बिल का विरोध नहीं करेंगे, तो वे इफ्तार पार्टी में नहीं आएंगे।
परिणाम? जैसा कहा, वैसा किया गया! कई उलेमा नेताओं ने इफ्तार पार्टी का खुलेआम बायकॉट कर दिया, जिससे बिहार की सियासत में हलचल मच गई।
225 का लक्ष्य फिक्स, लेकिन मुस्लिम वोटर का क्या होगा?
नीतीश कुमार के लिए यह इफ्तार सिर्फ दावत नहीं थी, बल्कि 225 सीटों का बड़ा मिशन भी जुड़ा था। 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर जेडीयू ने अपनी रणनीति तैयार कर ली है, लेकिन सवाल यह है कि क्या मुस्लिम वोटर्स अभी भी उनके साथ हैं?
2020 के बिहार चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के 11 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतरे थे, लेकिन एक भी नहीं जीत सका। ये आंकड़े बताते हैं कि मुस्लिम वोटबैंक उनसे खिसक चुका है। उलेमाओं के इस बायकॉट ने उनके लिए और मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोटर्स का गणित!
बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 17% है। यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल इस समुदाय को अपने पाले में लाने की कोशिश करते हैं। आरजेडी ने मुस्लिम-यादव (M-Y) समीकरण बनाकर उन्हें अपने सबसे बड़े वोट बैंक के रूप में पेश किया।
लेकिन अब एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और जन सुराज के प्रशांत किशोर भी मुस्लिम वोटरों पर अपनी नज़रें गड़ाए हुए हैं। ओवैसी ने सीमांचल की पांच सीटें जीतकर पहले ही दिखा दिया कि मुसलमानों के पास अब नए राजनीतिक विकल्प मौजूद हैं।
क्या नीतीश कुमार मुस्लिम वोटरों का भरोसा फिर से जीत पाएंगे? या फिर बिहार की सियासत में एक नया समीकरण बनने वाला है?
उलेमाओं के बायकॉट पर चिराग पासवान का बयान!
इफ्तार पार्टी के इस सियासी बायकॉट पर चिराग पासवान ने भी बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि "एनडीए सरकार ने मुस्लिमों के लिए जितना किया है, उतना आरजेडी या किसी अन्य सरकार ने नहीं किया।"
चिराग ने यहां तक दावा किया कि उनके पिता रामविलास पासवान बिहार में एक मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन उन्हें ऐसा करने नहीं दिया गया।
अब सवाल उठता है कि अगर एनडीए सरकार मुसलमानों के लिए इतनी अच्छी है, तो उलेमा उनके खिलाफ क्यों हैं? क्या मुस्लिम समाज को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है?
नीतीश कुमार की चुप्पी, सियासी मायने क्या हैं?
इफ्तार पार्टी पर बायकॉट का ऐलान होते ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली। उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन क्या यह चुप्पी उनकी राजनीतिक मजबूरी है या कोई रणनीति?
हाल ही में जेडीयू के बड़े नेता ललन सिंह ने कहा था कि "मुस्लिम वोट हमें नहीं मिलते, इसलिए हमें उनके भरोसे नहीं रहना चाहिए।" उनके इस बयान ने साफ कर दिया कि जेडीयू के भीतर भी मुस्लिम वोट बैंक को लेकर असमंजस है।
आगे की राजनीति: कौन होगा असली दावेदार?
बिहार में 2025 का चुनाव नजदीक है, और मुस्लिम वोटों को लेकर सियासी हलचल तेज होती जा रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि –
नीतीश कुमार मुस्लिम वोटर्स का भरोसा कैसे जीतेंगे?
क्या आरजेडी और महागठबंधन मुस्लिम वोटरों पर पूरी तरह कब्जा कर पाएगा?
क्या एआईएमआईएम और प्रशांत किशोर का फैक्टर कोई नया खेल करेगा?
इस इफ्तार पार्टी का असली संदेश क्या है? क्या नीतीश का राजनीतिक ग्राफ गिर रहा है, या यह सिर्फ एक छोटी सी हलचल है? बिहार की राजनीति में आने वाले महीनों में बहुत कुछ बदल सकता है।इफ्तार की दावत या सियासी चाल?
बिहार की सियासत में इफ्तार अब सिर्फ रोजेदारों की दावत नहीं रही, बल्कि यह बड़ा राजनीतिक मंच बन गया है। उलेमाओं के इस बायकॉट से यह साफ हो गया कि मुस्लिम वोटर्स अब नई राजनीति की ओर देख रहे हैं।
आने वाले चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार अपनी रणनीति कैसे बदलते हैं? या फिर मुस्लिम वोट बैंक किसी नए खिलाड़ी के खाते में चला जाता है?
बिहार में राजनीति गरमाने लगी है, और आने वाले दिनों में सियासी उलटफेर तय है!
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