Naxalite Movement : बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल और यूपी नक्सल सूची से बाहर, केंद्र ने रोका सुरक्षा फंड!
20 साल बाद बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल और यूपी को नक्सल प्रभावित राज्यों की सूची से हटाया गया! अब केंद्र से नहीं मिलेगा सुरक्षा खर्च का फंड। जानिए पूरा सच।

नई दिल्ली: बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल और उत्तर प्रदेश को नक्सल प्रभावित राज्यों की सूची से बाहर कर दिया गया है। अब इन राज्यों को केंद्र सरकार से सुरक्षा खर्च के लिए किसी तरह की आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी। सरकार के इस फैसले ने देशभर में नई बहस छेड़ दी है—क्या सच में नक्सलवाद खत्म हो रहा है, या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक फैसला है?
20 साल में खत्म हुआ नक्सलवाद या यह सिर्फ एक आंकड़ा?
देश में नक्सलवाद की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से हुई थी। इस आंदोलन ने धीरे-धीरे कई राज्यों में अपने पैर पसार लिए, खासतौर पर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, और ओडिशा में। 2004 में 'पीपुल्स वॉर' और 'माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (MCCI)' के विलय के बाद, नक्सली संगठनों ने और भी हिंसक रूप धारण कर लिया।
2004 से 2024 के बीच नक्सलियों ने 8,851 लोगों की हत्या कर दी। ये आंकड़े दिखाते हैं कि देश ने किस तरह आतंक का सामना किया। लेकिन अब सरकार का कहना है कि नक्सली गतिविधियां काफी कम हो गई हैं, इसलिए इन राज्यों को सुरक्षा खर्च के लिए फंडिंग नहीं दी जाएगी।
नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घटी, लेकिन कहां अब भी खतरा?
सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 38 से घटाकर 18 कर दी है। हालांकि, कुछ इलाके अब भी खतरे की सूची में बने हुए हैं।
सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके अभी भी छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, और मध्य प्रदेश में हैं। यहां नक्सलियों का प्रभाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।
सबसे खतरनाक 6 जिले:
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अल्लूरी सीताराम राजू (आंध्र प्रदेश)
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बालाघाट (मध्य प्रदेश)
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कालाहांडी, कंधमाल, मलकानगिरी (ओडिशा)
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भद्राद्री-कोठागुडेम (तेलंगाना)
अब फंडिंग नहीं, तो राज्यों की सुरक्षा का क्या होगा?
2017 से अब तक केंद्र सरकार ने 2,568.49 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी थी। इसका इस्तेमाल नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़कें बनाने, पुल निर्माण, बिजली आपूर्ति और अन्य सुरक्षा उपायों में किया जाता था। लेकिन अब जब बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल और यूपी इस लिस्ट से बाहर हो गए हैं, तो सवाल उठता है—क्या ये राज्य अब खुद अपने खर्चे पर सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे?
क्या वाकई खत्म हो गया है नक्सलवाद?
विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सलियों का पूरी तरह खात्मा नहीं हुआ है। यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों की कार्रवाई से नक्सली कमजोर हुए हैं, लेकिन ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में अब भी उनकी पकड़ बनी हुई है।
सरकार ने इन इलाकों में सड़कें बनाने और विकास योजनाओं को बढ़ावा देने की रणनीति अपनाई है। गृह मंत्रालय के अनुसार, अब तक 5,178 किलोमीटर सड़कें बनाई जा चुकी हैं, जिससे सुरक्षा बलों की आवाजाही आसान हो गई है और आम जनता को भी राहत मिली है।
आगे क्या?
अब जब चार राज्य नक्सल मुक्त घोषित कर दिए गए हैं, तो सरकार का ध्यान बाकी 18 जिलों पर होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सुरक्षा बलों की तैनाती में ढिलाई बरती गई, तो नक्सली फिर से उभर सकते हैं।
सरकार का दावा है कि नक्सलवाद का खात्मा अब सिर्फ कुछ कदम दूर है, लेकिन क्या वाकई यह खत्म हो चुका है या सिर्फ दबा दिया गया है? यह आने वाले सालों में साफ हो जाएगा।
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