Pakistan Terrorism Confession : आख़िर पाकिस्तान ने मान ही लिया कि वो आतंकवाद को समर्थन देता है

पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो का बड़ा खुलासा—पाकिस्तान ने आतंकवाद को पाला और समर्थन दिया। जानिए क्यों अब भी आतंकी वहां मेहमान की तरह रह रहे हैं।

May 2, 2025 - 15:04
May 2, 2025 - 15:04
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Pakistan Terrorism Confession : आख़िर पाकिस्तान ने मान ही लिया कि वो आतंकवाद को समर्थन देता है
Pakistan Terrorism Confession : आख़िर पाकिस्तान ने मान ही लिया कि वो आतंकवाद को समर्थन देता है

आख़िर पाकिस्तान ने मान ही लिया कि वो आतंकवाद को समर्थन देता है

पाकिस्तान और आतंकवाद—दो ऐसे शब्द हैं जो दशकों से एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार इन आरोपों से इनकार करने के बावजूद, पाकिस्तान के भीतर से ही ऐसे कबूलनामे सामने आ रहे हैं जो यह साबित करते हैं कि आतंकवाद वहां की राज्य नीति का हिस्सा रहा है। हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी ने खुलेआम यह स्वीकार किया कि पाकिस्तान ने आतंकवादियों को संरक्षण दिया है। उनका यह बयान न सिर्फ पाकिस्तान की दोहरी नीति का पर्दाफाश करता है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिहाज़ से भी बेहद चिंताजनक है।



बिलावल भुट्टो का कबूलनामा: पाकिस्तान का काला सच

एक हालिया इंटरव्यू में, जो उन्होंने Sky News को दिया, बिलावल भुट्टो ने कहा,

"मुझे नहीं लगता कि यह कोई राज की बात है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों को पाला गया है, उन्हें हर किस्म की मदद दी गई है। पाकिस्तान का अतीत आतंकवाद को समर्थन देने का रहा है।"

इस बयान ने पाकिस्तान की सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी ISI की उस भूमिका को फिर उजागर कर दिया है जो उन्होंने दशकों से आतंकवादी संगठनों को प्रशिक्षण, धन और सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करने में निभाई है।



कारगिल से लेकर अफगान युद्ध तक: इतिहास गवाह है

भुट्टो का यह बयान परवेज़ मुशर्रफ के कारगिल युद्ध संबंधी कबूलनामे से मेल खाता है, जब उन्होंने स्वीकारा था कि पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ की योजना बनाई थी। इसके साथ ही पाकिस्तान के मौजूदा रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी हाल ही में माना कि पाकिस्तान वर्षों से भारत में आतंकवाद फैलाता रहा है।

भुट्टो ने अपने इंटरव्यू में यह भी स्वीकार किया कि अफगान युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के सहयोग से मुजाहिदीनों (आतंकवादियों) को मदद दी थी। उन्होंने इस दौरान पाकिस्तान की सेना की प्रमुख भूमिका का भी ज़िक्र किया। यह वो समय था जब अमेरिका और पाकिस्तान ने मिलकर अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिदीनों को खड़ा किया था—जो आगे चलकर तालिबान और अल-कायदा के रूप में विकसित हुए।



“हमने गलतियां की हैं, लेकिन अब सबक सीख लिया है” — भुट्टो का दावा

बिलावल भुट्टो ने यह दावा तो किया कि पाकिस्तान ने अपनी गुजरी गलतियों से सबक सीख लिया है और अब वह ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं है। मगर यह दावा कागज़ी ज़्यादा और ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर नज़र आता है। यदि पाकिस्तान ने सचमुच आतंकवाद को अलविदा कह दिया है, तो फिर आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वांछित आतंकवादी जैसे:

  • हाफिज सईद (लश्कर-ए-तैयबा का मुखिया)

  • मसूद अजहर (जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक)

  • दाऊद इब्राहिम (1993 मुंबई ब्लास्ट का मास्टरमाइंड)

पाकिस्तान की जमीन पर क्यों सुरक्षित बैठे हैं?

इन आतंकियों की मौजूदगी और पाकिस्तान सरकार की इन पर कार्रवाई न करना इस बात का प्रमाण है कि आतंकवाद वहां की रणनीतिक नीति का हिस्सा बना हुआ है।



विश्व समुदाय की चेतावनी: पाकिस्तान पर भरोसा नहीं

पाकिस्तान का यह चेहरा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नई बहस को जन्म देता है। अमेरिका, भारत, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों ने पहले ही पाकिस्तान को आतंकवाद का पनाहगाह बताया है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित संगठनों को खुलकर समर्थन देना और उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई न करना यह दर्शाता है कि पाकिस्तान आज भी आतंकियों को एक रणनीतिक संपत्ति (Strategic Asset) के रूप में देखता है।

FATF (Financial Action Task Force) द्वारा पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालना, इस बात का प्रतीक है कि उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ने के लिए पहले आतंकवाद से संबंध तोड़ना होगा।



पाकिस्तान की दोहरी नीति: एक तरफ शांति की बात, दूसरी तरफ आतंक का समर्थन

पाकिस्तान जब एक ओर दुनिया को दिखाने के लिए शांति वार्ता और द्विपक्षीय संबंधों की बात करता है, वहीं दूसरी ओर उसके यहां आतंकी कैंप्स चलाए जाते हैं, हथियारों की सप्लाई होती है, और सीमा पार आतंकवाद को अंजाम देने वाले भेजे जाते हैं। यह दोहरा चरित्र किसी भी देश के लिए दीर्घकालिक विश्वास का आधार नहीं बन सकता।

भारत समेत अन्य पड़ोसी देश इस चालबाजी से अच्छी तरह वाकिफ हो चुके हैं। पुलवामा हमला, उरी हमला, 26/11 मुंबई हमला—हर बार सुराग पाकिस्तान की ओर ही इशारा करते हैं।



भारतीय दृष्टिकोण: सावधानी और सजगता की ज़रूरत

भारत को इस प्रकार के कबूलनामों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह साफ है कि पाकिस्तान अभी भी अपनी जमीन पर Anti-India एजेंडा को हवा देने वाले संगठनों को संरक्षण दे रहा है। ऐसे में भारत को राजनयिक, सामरिक और तकनीकी रूप से मजबूत होना होगा ताकि किसी भी आपदा की स्थिति में त्वरित और निर्णायक जवाब दिया जा सके।

RAW और IB जैसी खुफिया एजेंसियों को भी पाकिस्तान के भीतर बढ़ती गतिविधियों पर गहरी निगरानी रखनी होगी।



बिलावल भुट्टो के बयान का वैश्विक असर

भुट्टो का यह बयान भारत के लिए एक डिप्लोमैटिक टूल बन सकता है। भारत इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर पाकिस्तान की पोल खोल सकता है। इससे न सिर्फ पाकिस्तान की साख को नुकसान पहुंचेगा बल्कि वहां की सरकार पर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा कि वह आतंकियों पर कार्रवाई करे।



Conclusion: अब वक्त है निर्णायक नीति का

पाकिस्तान के नेताओं द्वारा एक के बाद एक आतंकवाद से संबंधों को स्वीकार करना यह दर्शाता है कि जो बातें पहले सिर्फ भारत कहता था, अब पाकिस्तान के अपने ही नेता मानने लगे हैं। यह कबूलनामे इस बात का प्रमाण हैं कि पाकिस्तान की नीति में आतंकवाद कभी ना कभी केंद्र में रहा है।

लेकिन अब सवाल ये है कि क्या सिर्फ कबूलना काफी है? या पाकिस्तान को अब अपने किए की सज़ा भी भुगतनी चाहिए?

भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की इस रणनीति के प्रति और सतर्क होने की ज़रूरत है। और अगर वैश्विक शांति बनाए रखनी है, तो ऐसे देशों को जवाबदेह ठहराना होगा जो आतंकवाद को पालते-पोसते हैं।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।