Chhattisgarh Surrender: सात लाख के इनामी नक्सली दंपती ने अचानक किया सरेंडर, जानिए क्यों छोड़ा खून-खराबा!

छत्तीसगढ़ के कबीरधाम में सात लाख के इनामी नक्सली दंपती ने आत्मसमर्पण कर लिया है। जानिए क्यों उन्होंने हथियार छोड़े और अब उन्हें सरकार से क्या मिलेगा।

Apr 24, 2025 - 17:03
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Chhattisgarh Surrender: सात लाख के इनामी नक्सली दंपती ने अचानक किया सरेंडर, जानिए क्यों छोड़ा खून-खराबा!
Chhattisgarh Surrender: सात लाख के इनामी नक्सली दंपती ने अचानक किया सरेंडर, जानिए क्यों छोड़ा खून-खराबा!

छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में एक ऐसा सरेंडर हुआ है जिसने सुरक्षाबलों से लेकर नक्सलियों तक में हलचल मचा दी है। सात लाख रुपये के इनामी नक्सली दंपती ने हथियार छोड़ दिए और शांति का रास्ता अपना लिया। सवाल उठता है कि आखिर वो कौन सी वजहें थीं, जिनके चलते सालों तक जंगल में बंदूक थामे रहने वाले ये नक्सली अब मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं?

Chhattisgarh से आए इस Surrender ने क्यों बटोरी सुर्खियाँ?

गुरुवार को 29 वर्षीय रमेश उर्फ आटम गुड्डू और उसकी 21 वर्षीय पत्नी सविता उर्फ लच्छी पोयम ने पुलिस और सुरक्षाबलों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। रमेश के सिर पर 5 लाख और सविता पर 2 लाख का इनाम घोषित था। यानी कुल 7 लाख रुपये के इनामी नक्सली अब कानून के हवाले हैं।

कौन हैं ये नक्सली दंपती?

रमेश लंबे समय से महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ (MMC) जोन के गोंदिया, राजनांदगांव और बालाघाट जिलों में GRB डिवीजन कमेटी का सक्रिय सदस्य रहा है। वहीं सविता टांडा एरिया कमेटी से जुड़ी रही है। दोनों ने बीते 8 वर्षों से जंगलों में नक्सली गतिविधियों को अंजाम दिया।

साल 2019 में बकोदा गांव के जंगलों में हुई मुठभेड़ में रमेश घायल भी हुआ था। हथियारों की बात करें तो रमेश के पास 12 बोर बंदूक और सविता के पास 8 एमएम राइफल रहती थी।

क्यों किया सरेंडर? जानिए उनके अपने शब्दों में

अधिकारियों के मुताबिक, रमेश और सविता ने नक्सली संगठन के भीतर बढ़ते आंतरिक संघर्ष, अमानवीय व्यवहार, स्थानीय आदिवासियों पर अत्याचार और जंगल की कठिन जिंदगी से तंग आकर आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया।

सरकार की पुनर्वास नीति के तहत दोनों को 25-25 हजार रुपये नकद और आगे कई सुविधाएं दी जाएंगी।

इतिहास क्या कहता है नक्सल सरेंडर को लेकर?

छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में नक्सली सरेंडर की परंपरा कोई नई नहीं है। बीते एक दशक में सरकार की रणनीतियों, विशेषकर पुनर्वास नीति और गांवों में विकास योजनाओं के चलते सैकड़ों नक्सली मुख्यधारा में लौटे हैं। लेकिन किसी नक्सली दंपती का संयुक्त आत्मसमर्पण कम ही देखने को मिला है, और वो भी तब जब दोनों पर भारी इनाम घोषित हो।

क्या कहती है सरकार की रणनीति?

राज्य सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरेंडर करने वाले नक्सलियों को विशेष पैकेज के तहत राहत दे रही है। साथ ही, यदि कोई नक्सली अपने पूरे गांव को मुख्यधारा से जोड़ने में मदद करता है तो उस गांव को विशेष विकास योजनाओं का तोहफा दिया जा रहा है।

यह रणनीति "बंदूक छोड़ो, जीवन जोड़ो" के नारे के साथ काफी सफल होती दिख रही है।

नक्सली हिंसा के बदलते स्वरूप की झलक

एक समय था जब नक्सली आंदोलन को "गरीबों की लड़ाई" कहा जाता था। लेकिन समय के साथ इसमें न सिर्फ बाहरी राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ा बल्कि आंतरिक भ्रष्टाचार और हिंसा ने इसे खोखला कर दिया। अब संगठन के भीतर आत्मविश्वास की कमी, डर और भ्रम साफ नजर आ रहा है, और शायद यही वजह है कि ऐसे सरेंडर अब बढ़ते जा रहे हैं।

रमेश और सविता का सरेंडर सिर्फ दो लोगों की कहानी नहीं है, यह उस परिवर्तनशील सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य की बानगी है, जहां अब जंगलों की जिंदगी छोड़कर नक्सली शांति और पुनर्वास की ओर बढ़ रहे हैं।

सरेंडर की ये लहर अगर जारी रही, तो हो सकता है आने वाले समय में नक्सली हिंसा सिर्फ इतिहास की किताबों तक ही सीमित रह जाए।

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।