Indus Water Treaty : भारत ने पाकिस्तान से तोड़ी सिंधु जल संधि, क्या होगा अब?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया है। जानिए इसके पीछे की बड़ी वजह, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और इससे जुड़े बड़े फैसले।

नई दिल्ली से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है—जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ दशकों पुरानी सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का ऐलान कर दिया है। मंगलवार को हुए इस हमले में 26 लोगों की दर्दनाक मौत और कई गंभीर रूप से घायल हुए। इसके बाद बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक हुई, जहां यह अहम फैसला लिया गया।
लेकिन इस फैसले के पीछे केवल ताजा हमला ही वजह नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें इतिहास में कहीं गहरे दबी हैं। तो आइए जानें कि ये सिंधु जल संधि है क्या, और अब इसके रुकने से क्या बदल जाएगा?
क्या है सिंधु जल संधि और क्यों है ये अहम?
19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके तहत छह नदियों को दो भागों में बांटा गया:
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पूर्वी नदियाँ – रावी, ब्यास और सतलुज (भारत को पूर्ण अधिकार)
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पश्चिमी नदियाँ – सिंधु, झेलम और चिनाब (पाकिस्तान को प्राथमिक अधिकार, भारत को सीमित उपयोग की अनुमति)
इस संधि की खास बात यह थी कि दोनों देशों को पानी को लेकर स्थायी समाधान मिल गया था, और यह संधि भारत-पाक रिश्तों के इतिहास में सबसे स्थायी समझौतों में से एक मानी जाती रही है।
पहलगाम हमले के बाद भारत का कड़ा रुख
पहाड़ों के शांत शहर पहलगाम में हुए हमले ने भारत सरकार को झकझोर कर रख दिया। सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने स्पष्ट किया कि भारत अब सिंधु जल संधि के अंतर्गत पाकिस्तान को कोई जानकारी साझा नहीं करेगा, और संबंधित सभी बैठकों से खुद को अलग कर लेगा।
यह फैसला तब तक लागू रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करना बंद नहीं करता।
और क्या बदलेगा? भारत के कठोर कदम
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अटारी इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है।
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एसवीईएस (SAARC Visa Exemption Scheme) के तहत जारी सभी पाकिस्तानी वीजा रद्द कर दिए गए हैं।
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पाक नागरिकों को 48 घंटों के भीतर भारत छोड़ने का आदेश।
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पाकिस्तान हाई कमिशन के तीनों सैन्य सलाहकारों (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित कर दिया गया है और सप्ताह भर में भारत छोड़ने को कहा गया है।
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भारत ने इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग से भी सैन्य अधिकारियों को वापस बुला लिया है।
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1 मई 2025 से दोनों उच्चायोगों में स्टाफ की संख्या 55 से घटाकर 30 की जाएगी।
पाकिस्तान का तीखा विरोध
पाकिस्तान इस फैसले से आग बबूला है। पूर्व मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है। वहीं प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने राष्ट्रीय सुरक्षा कमेटी की आपात बैठक बुलाई और कहा कि भारत ऐसा कर ही नहीं सकता।
लेकिन भारत का दावा है कि जब देश की सुरक्षा पर आंच आती है, तब संधि से ऊपर राष्ट्रहित होता है।
इतिहास से सबक: क्या ये पहली बार है जब पानी को बना हथियार?
नहीं, ऐसा पहले भी हो चुका है। 1948 में भारत ने पाकिस्तान के लिए दो मुख्य नहरों का पानी रोक दिया था, जिससे पाक पंजाब की 17 लाख एकड़ भूमि पर सूखा जैसी स्थिति बन गई थी। तब भी भारत कश्मीर मुद्दे पर दबाव बनाने की रणनीति अपना रहा था।
अब आगे क्या?
भारत के इस कदम से क्षेत्र में तनाव और गहरा सकता है। जहां एक ओर पाकिस्तान इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने की योजना बना रहा है, वहीं भारत इसे एक रणनीतिक निर्णय मान रहा है।
सवाल यह है कि क्या यह फैसला द्विपक्षीय संबंधों की नींव हिला देगा, या फिर यह पाकिस्तान को आतंकवाद से दूरी बनाने पर मजबूर करेगा?
सिंधु जल संधि एक प्रतीक थी – सहयोग और संयम की। लेकिन जब तक सीमाओं पर शांति नहीं होगी, तब तक ऐसी संधियों का कोई मतलब नहीं रह जाता। भारत ने साफ कर दिया है कि रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि पाकिस्तान इस कूटनीतिक चुनौती का क्या जवाब देगा और क्षेत्र में शांति की संभावनाएं क्या रूप लेंगी।
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