Saharsa Suicide: लहंगे की ख्वाहिश में गई जान, 16 साल की आरती ने निगली ज़िंदगी
बिहार के सहरसा में एक 16 वर्षीय लड़की आरती कुमारी ने सिर्फ़ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे बहन की शादी में नया लहंगा नहीं मिला। ये घटना किशोरों की अनकही भावनाओं की गहराई को उजागर करती है।

सहरसा जिले के दुम्मा गांव से आई यह खबर केवल एक आत्महत्या की घटना नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक पीड़ा और समझ की कमी की तस्वीर है। 16 साल की आरती कुमारी, एक साधारण कोचिंग छात्रा, जिसकी एक छोटी सी ख्वाहिश ने उसे ज़िंदगी से दूर कर दिया — सिर्फ इसलिए क्योंकि बहन की शादी में उसे नया लहंगा नहीं दिया गया।
यह घटना एक बार फिर हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि किशोरों की भावनाएं कितनी नाज़ुक होती हैं, और किस तरह हमारे समाज में उन्हें अक्सर नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
लहंगे के सपने और टूटता आत्मविश्वास
आरती को अपनी बड़ी बहन की शादी का बेसब्री से इंतज़ार था। वह अपनी सहेलियों से रोज़ इस बारे में बातें करती — किस रंग का लहंगा पहनेगी, कैसी चूड़ियां लेंगी, बाल कैसे सजाएंगी। यह शादी उसके लिए एक सपने जैसी थी। लेकिन जब परिवार ने उसकी इस ख्वाहिश को “फालतू जिद” कहकर ठुकरा दिया, तो उसके सपनों की चूड़ियां चटक गईं।
सल्फास की गोली और बुझता हुआ बचपन
परिवार ने शुरुआत में इस आत्महत्या को आर्थिक तनाव और पढ़ाई के दबाव से जोड़ने की कोशिश की। लेकिन जब उसकी कोचिंग की सहेलियों ने यह बताया कि आरती सिर्फ लहंगे को लेकर दुखी थी, तब सच सामने आया। एक साधारण इच्छा — जो किसी भी लड़की के लिए खास दिन पर खास दिखने की होती है — उसकी ज़िंदगी का अंत बन गई।
आरती को सूर्या अस्पताल ले जाया गया, लेकिन ज़हर शरीर में फैल चुका था। डॉक्टरों ने काफी कोशिश की, मगर वो उसे बचा नहीं सके। पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कर परिजनों को सौंप दिया और अब मामले की जांच चल रही है।
इतिहास में झांकते किशोर मन की गहराई
भारत में किशोरों की आत्महत्या कोई नई बात नहीं है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक हर साल हजारों किशोर अवसाद, अस्वीकार और अकेलेपन का शिकार होकर अपनी जान दे देते हैं। अक्सर कारण पढ़ाई का तनाव, रिश्तों में खटास या घर के तानों तक सीमित समझे जाते हैं। लेकिन आरती की तरह कई बार आत्महत्या के पीछे वजहें बेहद साधारण, लेकिन भावनात्मक रूप से भारी होती हैं।
समाज कब सुनेगा किशोरों की खामोशी?
आरती की मौत ने एक सवाल छोड़ दिया है: क्या हम अपने बच्चों की भावनाओं को गंभीरता से ले रहे हैं? क्या हम सिर्फ इसलिए किसी की भावना को अनदेखा कर सकते हैं क्योंकि वह हमारे नज़रिए से 'छोटी बात' है? एक लहंगे की ख्वाहिश पर जान चली जाना, समाज की चुप्पी का प्रमाण है।
मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता की ज़रूरत
किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना अब विलासिता नहीं, ज़रूरत बन चुका है। स्कूलों, कोचिंग संस्थानों और घरों में भावनात्मक संवाद की व्यवस्था होनी चाहिए। यह घटना बताती है कि कैसे एक चुप रह जाने वाला दर्द आत्मघात की ओर ले जा सकता है।
What's Your Reaction?






