Jharkhand Loss: झारखंड आंदोलन के नायक कपूर बागी नहीं रहे, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पहुंचे अंतिम यात्रा में
झारखंड आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शामिल कपूर कुमार टुडू उर्फ कपूर बागी का निधन हो गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके पैतृक गांव पहुंचकर श्रद्धांजलि दी और अंतिम यात्रा में शामिल हुए। जानिए उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानी।

झारखंड आंदोलन की लड़ाई में एक अहम किरदार निभाने वाले और अपनी बेबाकी से ‘कपूर बागी’ के नाम से मशहूर कपूर कुमार टुडू का मंगलवार, 6 मई 2025 को निधन हो गया। उनके निधन की खबर से सरायकेला-खरसावां जिले ही नहीं, पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई। वे न सिर्फ एक आंदोलनकारी थे, बल्कि सामाजिक न्याय और जनकल्याण के लिए भी उनकी पहचान थी।
उनके अंतिम दर्शन के लिए खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चांडिल के चिलगू-चाकुलिया स्थित पैतृक गांव पहुंचे। उन्होंने दिवंगत नेता के पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की और उनकी अंतिम यात्रा में भी शामिल होकर परिवार को ढांढस बंधाया।
कौन थे कपूर बागी?
कपूर कुमार टुडू, जिन्हें आमजन ‘कपूर बागी’ के नाम से जानते थे, झारखंड राज्य आंदोलन के शुरुआती दिनों से ही इससे जुड़े रहे। वे उन लोगों में से एक थे जिन्होंने अलग झारखंड राज्य के लिए सड़कों पर उतरकर लड़ाई लड़ी। उनका जीवन सादगी से भरा रहा और वे अंतिम समय तक सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे।
कपूर बागी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के फुफेरे भाई भी थे, इसीलिए व्यक्तिगत रूप से भी मुख्यमंत्री के लिए यह बहुत बड़ी क्षति है। मुख्यमंत्री ने कहा, “मैंने एक भाई, दोस्त और झारखंड आंदोलन का योद्धा खो दिया है। यह सिर्फ पारिवारिक क्षति नहीं, बल्कि राज्य ने अपना सच्चा सपूत खोया है।”
आंदोलन से लेकर सामाजिक सेवा तक
कपूर टुडू ने सिर्फ झारखंड आंदोलन में ही नहीं, बल्कि बाद के वर्षों में समाजसेवा के जरिए भी खुद को साबित किया। वे गरीबों, मजदूरों और आदिवासियों की आवाज़ बनते रहे। उनके जीवन का मिशन था – ‘हर पीड़ित तक न्याय पहुंचे’।
उनकी पत्नी सुकुरमनी टुडू, दो बेटे और एक बेटी उनके परिवार में हैं। मां सुखी टुडू भी जीवित हैं। उनका परिवार हमेशा समाजसेवा और संघर्ष की प्रेरणा रहा है।
श्रद्धांजलि सभा में उमड़ा जनसैलाब
उनकी अंतिम यात्रा में जनसैलाब उमड़ पड़ा। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता, आंदोलनकारी साथी, स्थानीय लोग, पत्रकार और अन्य सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे। अंतिम यात्रा में मौजूद लोगों की आंखों में आंसू थे, लेकिन चेहरे पर गर्व भी – कि उन्होंने एक ऐसे इंसान को देखा था जिसने जिंदगी को सिर्फ दूसरों के लिए जिया।
झारखंड की राजनीति में था मजबूत प्रभाव
हालांकि वे कभी मुख्यधारा की राजनीति में नहीं आए, लेकिन कपूर बागी का राजनीतिक प्रभाव मजबूत था। कई बार स्थानीय प्रशासन ने उनके सुझावों को गंभीरता से लिया और नीतियों में बदलाव किए। वे हमेशा कहते थे, “नेता बनना मकसद नहीं, समाज को दिशा देना ही असली लक्ष्य है।”
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