Saharsa Suicide Mystery : फीस के लिए न मिले पैसे, नाबालिग ने निगला ज़हर!
सहरसा के ओकाही पंचायत में एक नाबालिग लड़की की आत्महत्या ने गांव को झकझोर दिया है। क्या फीस न दे पाने की मजबूरी थी कारण या पीछे छिपा है कोई प्रेम प्रसंग? पढ़िए पूरी कहानी।

बिहार के सहरसा जिले से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है जिसने न केवल एक परिवार को तोड़ दिया, बल्कि समाज के उस कड़वे सच को भी सामने ला दिया है, जहां गरीबी शिक्षा से बड़ी दीवार बन जाती है। बिहरा थाना क्षेत्र के ओकाही पंचायत के दुम्मा गांव की रहने वाली 14 वर्षीय आरती कुमारी ने सिर्फ इसलिए ज़हर खा लिया क्योंकि उसके पिता कोचिंग की फीस नहीं चुका सके।
क्या था पूरा मामला?
आरती कुमारी, जो सहरसा शहर के एक नामी प्राइवेट कोचिंग में 9वीं कक्षा की पढ़ाई कर रही थी, कुछ समय से फीस को लेकर परेशान चल रही थी। कोचिंग की बकाया फीस छह हजार रुपये हो चुकी थी। जब उसने अपने पिता सुभाष यादव से फीस मांगी, तो उन्होंने दो हजार रुपये ही दे सके और कहा कि बाकी पैसे बाद में देंगे। लेकिन आरती ने ज़ोर देकर कहा कि शिक्षक बार-बार पूरी फीस जमा करने का दबाव डाल रहे हैं।
इसपर पिता ने कहा कि “अगर पैसे नहीं हैं तो कोचिंग जाना बंद कर दो।” यही बात आरती को इतनी चुभी कि उसने जहर की गोली खा ली। उसकी तबीयत बिगड़ी तो परिजन आनन-फानन में उसे एक निजी नर्सिंग होम ले गए, लेकिन इलाज के दौरान ही उसकी मौत हो गई।
कौन है दोषी – गरीबी, सिस्टम या कोई और?
इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी असंवेदनशील हो गई है कि फीस न देने पर बच्चों की आत्मा तक दबाव में आ जाए? या फिर यह सिर्फ एक गरीब पिता की बेबसी थी जो अपनी बेटी को सपने तो दिखा सका लेकिन पूरा न कर सका?
गांव में इस घटना को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। कुछ लोग इसे प्रेम प्रसंग से जोड़ रहे हैं, तो कुछ इसे महज पारिवारिक तनाव मान रहे हैं। लेकिन परिजन साफ तौर पर फीस को ही मौत का कारण बता रहे हैं।
क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी?
थानाध्यक्ष संतोष कुमार निराला के अनुसार, “फिलहाल यह आत्महत्या का मामला लग रहा है। हम सभी संभावित पहलुओं की जांच कर रहे हैं, ताकि सच सामने आ सके।”
इतिहास में झांकें तो...
बिहार में आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्याओं की घटनाएं नई नहीं हैं। कुछ साल पहले मधुबनी में भी एक किसान की बेटी ने परीक्षा फॉर्म न भर पाने की वजह से आत्महत्या कर ली थी। सवाल ये है कि क्या हम अपने युवाओं को इतना असहाय बना रहे हैं कि वे मौत को ही आसान रास्ता समझने लगे?
समाज के लिए सबक
आरती की आत्महत्या केवल एक घरेलू मामला नहीं, यह एक सामाजिक और सरकारी व्यवस्था की असफलता का आईना है। कोचिंग संस्थानों की फीस वसूली की बेरुखी, गरीब परिवारों पर बढ़ता आर्थिक दबाव और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति हमारी उदासीनता मिलकर ऐसे त्रासदीपूर्ण परिणाम दे रही है।
क्या किया जा सकता है?
सरकार को चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए फीस सहायता योजना को और प्रभावी बनाए। कोचिंग संस्थानों को फीस वसूली के लिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाने का निर्देश दिया जाए। साथ ही, हर स्कूल और कोचिंग में काउंसलिंग की सुविधा अनिवार्य की जानी चाहिए।
आरती की मौत एक चेतावनी है — केवल गरीबी ही जिम्मेदार नहीं, बल्कि हमारी चुप्पी और संवेदनहीनता भी इस त्रासदी की भागीदार है। अब समय है कि समाज, प्रशासन और शिक्षा संस्थान मिलकर ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।
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