Nawada RTI: मानवाधिकार आयोग की कार्यशैली पर सवाल, आरटीआई कार्यकर्ता ने उठाई बड़ी मांग
नवादा के आरटीआई कार्यकर्ता ने मानवाधिकार आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। लंबित वाद, रिक्त पदों और न्यायिक प्रक्रिया में देरी पर जानकारी मांगी।
बिहार के नवादा में मानवाधिकार आयोग की कार्यशैली को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता प्रणव कुमार चर्चिल ने बड़ा कदम उठाया है। सूचना के अधिकार के तहत उन्होंने आयोग की कार्यप्रणाली, लंबित वादों और रिक्त पदों को लेकर कई सवाल उठाए हैं।
क्या है मामला?
मानवाधिकार आयोग, जिसे लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करना चाहिए, पिछले कुछ समय से अपनी भूमिका में विफल नजर आ रहा है। अध्यक्ष पद लंबे समय से रिक्त पड़ा है, जिसके कारण दर्जनों मामलों को न तो सुलझाया गया है और न ही न्याय दिलाया जा सका है।
प्रणव कुमार चर्चिल ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन कर आयोग में रिक्त पदों की संख्या, नियुक्ति प्रक्रिया और अन्य संबंधित दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां मांगी हैं।
लंबित वादों का बढ़ता अंबार
राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष पद खाली होने के कारण सैकड़ों वाद लंबित पड़े हैं। न्याय की उम्मीद में पहुंचे पीड़ितों को लगातार निराशा का सामना करना पड़ रहा है।
इस देरी से न केवल पीड़ितों में असंतोष बढ़ रहा है, बल्कि आरोपी भी निडर होकर कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता का कहना
चर्चिल ने कहा:
"मानवाधिकार आयोग का उद्देश्य लोगों के अधिकारों की रक्षा करना है, लेकिन वर्तमान स्थिति में यह अपने उद्देश्य को पूरा करने में असफल साबित हो रहा है। मैंने यह जानने की कोशिश की है कि आयोग में कितने पद खाली हैं और उनकी नियुक्ति प्रक्रिया क्या है।"
इतिहास में मानवाधिकार आयोग की भूमिका
मानवाधिकार आयोग की स्थापना इस उद्देश्य से की गई थी कि यह पीड़ितों को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत स्थापित आयोग ने कई महत्वपूर्ण मामलों में हस्तक्षेप कर न्याय दिलाया है।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हुए हैं। रिक्त पदों और लंबित वादों की बढ़ती संख्या ने इसकी विश्वसनीयता को प्रभावित किया है।
रिक्त पद और उनकी प्रक्रिया
चर्चिल ने अपने आवेदन में यह भी पूछा है कि आयोग में कितने पद खाली हैं और उनकी भर्ती प्रक्रिया क्या है। उन्होंने आयोग से सभी संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने की मांग की है ताकि यह पता चल सके कि नियुक्तियों में देरी क्यों हो रही है।
जनता की प्रतिक्रिया
इस मामले पर स्थानीय लोगों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है।
नवादा निवासी सुनीता देवी ने कहा:
"अगर आयोग ही न्याय देने में असमर्थ है, तो आम आदमी कहां जाएगा? हमें ऐसी संस्थाओं से ज्यादा पारदर्शिता और तत्परता की उम्मीद है।"
न्याय में देरी और उसका प्रभाव
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि न्याय में देरी, न्याय से वंचित रखने के समान है।
"लंबित वाद न केवल पीड़ितों की उम्मीदों को तोड़ते हैं, बल्कि अपराधियों का मनोबल भी बढ़ाते हैं," स्थानीय अधिवक्ता राकेश कुमार ने कहा।
आयोग की जिम्मेदारी और चुनौतियां
मानवाधिकार आयोग को न केवल न्याय दिलाने का काम करना चाहिए, बल्कि इसे समयबद्ध और पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए। हालांकि, रिक्त पदों, संसाधनों की कमी और राजनीतिक दखल ने आयोग की कार्यक्षमता पर गंभीर प्रभाव डाला है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
मानवाधिकार विशेषज्ञ डॉ. अजय शर्मा का मानना है:
"आयोग को मजबूत करने के लिए इसमें कुशल और सक्षम व्यक्तियों की नियुक्ति होनी चाहिए। साथ ही, न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखना भी जरूरी है।"
नवादा के आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा उठाए गए सवाल न केवल मानवाधिकार आयोग की कार्यप्रणाली पर रोशनी डालते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि न्यायिक प्रणाली में सुधार की कितनी आवश्यकता है।
What's Your Reaction?