Chaibasa Murder: जंगल से मिला पारा शिक्षक का क्षत-विक्षत शव, सिर पत्थर से कुचला, पूरे गांव में मातम और दहशत का माहौल!
पश्चिमी सिंहभूम के नक्सल प्रभावित टेबो थाना क्षेत्र में 57 वर्षीय पारा शिक्षक सनिका टोपनो की पत्थर से कुचलकर हत्या कर दी गई। शव जंगल से बरामद हुआ, गांव में आक्रोश और दहशत का माहौल।

पश्चिमी सिंहभूम के घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों के बीच बसा पिंगु गांव एक बार फिर सनसनीखेज वारदात का गवाह बना। अति नक्सल प्रभावित टेबो थाना क्षेत्र में 57 वर्षीय पारा शिक्षक सनिका टोपनो की पत्थर से कुचलकर निर्मम हत्या कर दी गई। घटना ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया है।
बुधवार सुबह करीब 6 बजे, हमेशा की तरह सनिका टोपनो अपने गांव पिंगु से पैदल निकल पड़े थे लोवाहातु स्थित स्कूल की ओर, जहां वे वर्षों से बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे थे। लेकिन इस बार वह घर लौटे ही नहीं। शाम होते-होते चिंता बढ़ने लगी। परिजनों ने पहले खुद तलाश की, लेकिन जब कुछ पता नहीं चला, तो गुरुवार की सुबह टेबो थाना में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई।
पुलिस ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से सर्च ऑपरेशन शुरू किया और उसी दिन, दोपहर में, हरसिंग कोचा के जंगलों में एक भयावह दृश्य सामने आया — सनिका का शव झाड़ियों में पड़ा था, सिर पत्थर से बुरी तरह कुचला हुआ। पहली ही नजर में यह साफ हो गया कि हत्या नृशंसता की हदें पार कर चुकी है।
शव को कब्जे में लेकर टेबो थाना लाया गया, लेकिन शाम हो जाने की वजह से पोस्टमार्टम नहीं हो सका। शुक्रवार को शव को चक्रधरपुर अनुमंडल अस्पताल भेजा गया, जहां पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को शव सौंपा जाएगा।
परिवार और गांव में मातम
मृतक के तीन बच्चे हैं — दो बेटे और एक बेटी। परिजनों का कहना है कि सनिका टोपनो की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। वे एक मृदुभाषी और सामाजिक व्यक्ति थे, जो पूरे गांव में अपनी विनम्रता के लिए जाने जाते थे। यही वजह है कि उनकी हत्या ने गांववालों को झकझोर दिया है। पिंगु गांव में आक्रोश का माहौल है और लोग पुलिस से जल्द से जल्द हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं।
पुलिस के लिए चुनौती बना इलाका
टेबो थाना क्षेत्र पश्चिमी सिंहभूम का वो हिस्सा है जो लंबे समय से नक्सली गतिविधियों का केंद्र रहा है। जंगलों और बीहड़ इलाकों के कारण पुलिस को न केवल नियमित पेट्रोलिंग में दिक्कत आती है, बल्कि अपराध के बाद भी सबूत इकट्ठा करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। इस केस में भी पुलिस को शव तक पहुंचने में खासा वक्त लग गया।
शिक्षा के लिए जान जोखिम में
सनिका टोपनो उन शिक्षकों में से थे जो सीमित संसाधनों और जोखिम भरे माहौल में भी बच्चों को पढ़ाने के लिए रोजाना कई किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय जाते थे। यह हत्या केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस समर्पण और साहस की भी हत्या है जो आदिवासी इलाकों में शिक्षा के लिए जरूरी है।
पुलिस की कार्रवाई और जांच
पुलिस ने हत्या के पीछे की वजह जानने के लिए जांच शुरू कर दी है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि यह व्यक्तिगत रंजिश, नक्सलियों की चेतावनी, या किसी अन्य कारण से की गई हत्या है। हालांकि, सूत्रों का मानना है कि इस क्षेत्र में सक्रिय नक्सलियों द्वारा शिक्षकों को कई बार चेतावनी दी गई थी, जो इस घटना को एक अलग दिशा दे सकती है।
क्या कहता है इतिहास?
यह पहला मौका नहीं है जब इस इलाके में शिक्षकों या सरकारी कर्मियों पर हमले हुए हैं। इससे पहले भी नक्सली इलाकों में काम करने वाले शिक्षकों को धमकाया गया है, अपहरण और हमले तक किए गए हैं। लेकिन सनिका टोपनो की इस क्रूर हत्या ने नक्सल हिंसा की पुरानी यादें ताजा कर दी हैं।
सरकार और प्रशासन की चुप्पी?
अब सवाल उठता है — क्या सरकार और प्रशासन इस तरह की घटनाओं से सबक लेगा? क्या शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों को ऐसे खतरनाक इलाकों में काम करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा मिलेगी?
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