Delhi Selection: दलित समाज से फिर Chief Justice बनने जा रहे हैं जस्टिस गवई, जानिए उनकी पूरी कहानी
दिल्ली में नया इतिहास बनने जा रहा है। जस्टिस भूषण गवई 14 मई को भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) पद की शपथ लेंगे। वे इस पद पर पहुंचने वाले दूसरे दलित न्यायाधीश होंगे।

नई दिल्ली से एक बड़ी खबर सामने आई है जो देश की न्यायपालिका और सामाजिक समरसता दोनों के लिहाज़ से बेहद अहम मानी जा रही है। 14 मई को जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में शपथ लेंगे। वे मौजूदा CJI जस्टिस संजीव खन्ना की सेवानिवृत्ति के अगले दिन यह पद संभालेंगे।
यह नियुक्ति न सिर्फ संवैधानिक दृष्टि से अहम है, बल्कि सामाजिक तौर पर भी ऐतिहासिक मानी जा रही है, क्योंकि जस्टिस गवई, भारत के इतिहास में दूसरे दलित CJI होंगे। उनसे पहले जस्टिस के. जी. बालकृष्णन ने 2007 में यह मुकाम हासिल किया था।
कौन हैं जस्टिस भूषण गवई?
महाराष्ट्र के अमरावती जिले से आने वाले जस्टिस गवई का करियर बेहद प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने 1985 में वकालत की शुरुआत की थी और बैरिस्टर राजा भोंसले के साथ काम किया, जो महाराष्ट्र हाई कोर्ट के पूर्व एडवोकेट जनरल और जज रह चुके हैं।
1987 से 1990 तक उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की और फिर नागपुर बेंच में संवैधानिक और प्रशासनिक मामलों में विशेषज्ञता हासिल की। 1992 में उन्हें असिस्टेंट गवर्नमेंट प्लीडर और अतिरिक्त लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। बाद में 2000 में उन्हें मुख्य सरकारी वकील बनाया गया।
न्यायिक सफर
जस्टिस गवई को 2003 में हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। उनके निर्णयों में सामाजिक न्याय, संवैधानिक मूल्यों और पारदर्शिता की झलक साफ दिखती है।
सुप्रीम कोर्ट में उन्हें 2019 में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। यहां भी उन्होंने कई अहम मामलों में भूमिका निभाई — जिनमें दो सबसे बड़े फैसले रहे:
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नोटबंदी (2016) के फैसले को संवैधानिक ठहराना
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इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक घोषित करना
इन फैसलों ने देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र की कार्यप्रणाली पर गहरा असर डाला है। इससे उनकी न्यायिक दृष्टि और निष्पक्षता को लेकर काफी सराहना मिली।
छह महीने का कार्यकाल, लेकिन बड़ी उम्मीदें
जस्टिस गवई का कार्यकाल लगभग छह महीने का रहेगा, क्योंकि वे नवंबर 2025 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। हालांकि समय कम है, लेकिन उनकी नियुक्ति में बड़ा संदेश छुपा है — न्यायपालिका में समावेशिता और सामाजिक प्रतिनिधित्व।
सामाजिक संदेश और राजनीतिक संकेत
भारत में लंबे समय तक न्यायपालिका में ऊंची जातियों का वर्चस्व रहा है। ऐसे में दलित समाज से एक बार फिर CJI बनना न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम भी माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जस्टिस गवई का अनुभव, संवेदनशीलता और न्यायिक समझ, उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बनाते हैं। खासकर जब देश में संविधानिक संस्थानों पर भरोसे और पारदर्शिता को लेकर सवाल उठ रहे हैं, तब उनका नेतृत्व महत्वपूर्ण हो सकता है।
जस्टिस भूषण गवई की नियुक्ति सिर्फ एक पदभार नहीं, बल्कि एक सामाजिक और संवैधानिक संकेत है। एक ऐसा संकेत जो बताता है कि भारत की न्यायपालिका धीरे-धीरे विविधता और समानता की ओर अग्रसर है।
जस्टिस गवई का कार्यकाल भले ही छोटा हो, लेकिन उनके निर्णय और दृष्टिकोण आने वाले समय में न्यायपालिका की दिशा तय कर सकते हैं। अब देखने वाली बात होगी कि वे इस पद पर रहते हुए क्या ऐसे फैसले लाते हैं जो लंबे समय तक याद किए जाएं।
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