Lakhimpur Attack: खेत से लौटते मासूम पर टूटा मौत का शिकंजा, आवारा कुत्तों ने नोच-नोचकर मार डाला!
लखीमपुर के बेलहरी गांव में खेत से घर लौट रहे सात साल के मासूम को आवारा कुत्तों ने नोचकर मार डाला। यह दिल दहला देने वाली घटना प्रशासन की लापरवाही और ग्रामीण सुरक्षा की पोल खोलती है।

लखीमपुर (उत्तर प्रदेश) का नीमगांव क्षेत्र रविवार दोपहर उस वक्त सन्नाटे में डूब गया, जब सात साल के मासूम सूर्यांश की जान आवारा कुत्तों ने बेरहमी से ले ली। खेत से अकेले घर लौटते इस बच्चे को एक झुंड ने घेर लिया और गले पर हमला कर दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
घटना बेलहरी गांव की है, जहां अचल शुक्ला का बेटा सूर्यांश अपने पिता के साथ खेत पर गया था। कुछ देर बाद वह बिना बताए घर लौटने के लिए निकल पड़ा, लेकिन घर कभी नहीं पहुंचा।
मासूम की मौत और कुत्तों की हैवानियत
गांव वालों ने खेत से करीब 300 मीटर दूर बच्चे का लहूलुहान शव पड़ा देखा। पास ही कुत्तों का झुंड था, जो अब भी शव के आसपास मंडरा रहा था।
पिता जब मौके पर पहुंचे तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई — मासूम के गले पर गहरा जख्म था और पूरा शरीर खून से लथपथ। यह नज़ारा जिसने भी देखा, उसकी रूह कांप गई।
परिवार में मातम, गांव में दहशत
इस दर्दनाक घटना के बाद से गांव में सन्नाटा और डर का माहौल है। हर मां-बाप अपने बच्चों को अकेले बाहर भेजने से घबरा रहे हैं।
सूर्यांश आंगनबाड़ी केंद्र में पढ़ता था और घर में सबका दुलारा था। पिता अचल शुक्ला ने बताया कि सूरज की तपिश के कारण उन्होंने उसे खेत में ही रोक लिया था, लेकिन मासूम अकेले चल पड़ा और फिर कभी वापस नहीं आया।
कुत्तों की बढ़ती हिंसकता और प्रशासन की चुप्पी
बेलहरी की ये घटना कोई पहली नहीं है। करीब आठ साल पहले इसी इलाके में एक और मासूम की जान कुत्तों के हमले में गई थी।
अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि हर दिन 50 से ज्यादा लोगों को कुत्ते काट रहे हैं, लेकिन अब जान लेने वाला मामला सामने आया है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नगर पालिका और ग्राम पंचायत क्या कर रहे हैं?
पालतू और आवारा दोनों ही बन रहे खतरा
केवल आवारा नहीं, पालतू कुत्ते भी अब हिंसक हो रहे हैं। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. दिनेश कुमार सचान बताते हैं कि
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मौसम में बदलाव
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भोजन की कमी
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कचरे का सही निस्तारण न होना
जैसी समस्याएं कुत्तों को आक्रामक बना रही हैं।
पहले ये कुत्ते होटल, ढाबों और बाजारों से खाने के टुकड़े जुटा लेते थे। अब वो स्रोत भी बंद हो गए हैं, जिससे उनकी हिंसक प्रवृत्ति बढ़ गई है।
पालतू कुत्तों का भी कोई हिसाब नहीं!
जिले की किसी भी नगर पालिका में एक भी पालतू कुत्ते का रजिस्ट्रेशन नहीं है, जबकि नियम के मुताबिक हर कुत्ते का पंजीकरण अनिवार्य है। इसका मतलब है कि अगर कोई पालतू कुत्ता भी हमला कर दे, तो उसकी पहचान और जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाएगा।
अब क्या करें प्रशासन और जनता?
इस घटना ने सवाल खड़े कर दिए हैं –
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क्या ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की सुरक्षा की कोई व्यवस्था है?
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क्या प्रशासन आवारा कुत्तों पर कार्रवाई करेगा?
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क्या कुत्तों के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य रूप से लागू किया जाएगा?
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि
तुरंत आवारा कुत्तों की पहचान और निगरानी की व्यवस्था हो
पालतू कुत्तों के रजिस्ट्रेशन पर सख्ती हो
पशु चिकित्सा विभाग कुत्तों की भोजन और टीकाकरण योजनाओं को सुदृढ़ करे
ग्राम पंचायतें इस पर सक्रिय भूमिका निभाएं
सवाल जो उठ रहे हैं…
बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा किसका?
अगर कल फिर कोई मासूम शिकार हुआ, तो जवाबदेही कौन लेगा?
क्या किसी की लापरवाही के चलते हमारी गलियों में मौत घूम रही है?
लखीमपुर की यह घटना सिर्फ एक मासूम की मौत नहीं, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की मौत भी है। जब तक सरकार, नगर पालिका और आम जनता सामूहिक जिम्मेदारी नहीं उठाएंगे, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी।
कहते हैं कि “कुत्ते वफादार होते हैं”, लेकिन जब व्यवस्था सो जाए, तो वही वफादारी हिंसा में बदल जाती है।
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