Muzaffarpur Tragedy: जलती झोपड़ियों में घिरी मासूम ज़िंदगियाँ, 4 बच्चों की मौत से गांव में मातम
मुजफ्फरपुर के महादलित बस्ती में सिलेंडर ब्लास्ट से लगी आग ने 4 मासूम बच्चों की जान ले ली। आग की लपटों ने कई घरों को राख कर दिया, प्रशासन की देरी पर ग्रामीणों में नाराज़गी है।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसने पूरे इलाके को सदमे में डाल दिया है। बरियारपुर थाना क्षेत्र के रामपुरमनी पंचायत स्थित एक महादलित बस्ती में लगी भीषण आग में चार मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई। घटना इतनी भयावह थी कि गांव में चीख-पुकार मच गई और लोग अपने परिवारजनों को बचाने की कोशिश में सब कुछ हार बैठे।
कब और कैसे हुई यह घटना?
यह हादसा सोमवार की रात करीब 9 बजे हुआ जब बस्ती के एक घर में रखा गैस सिलेंडर अचानक फट गया। सिलेंडर विस्फोट इतना जोरदार था कि आवाज़ कई किलोमीटर दूर तक सुनाई दी। उसके बाद जो हुआ वह किसी डरावने सपने से कम नहीं था। आग की लपटें तेज़ी से एक घर से दूसरे घर में फैल गईं, और देखते ही देखते दर्जनों झोपड़ियां राख में तब्दील हो गईं।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, आग इतनी तेज़ी से फैली कि लोगों को खुद को और अपने बच्चों को बचाने का मौका तक नहीं मिला। चार बच्चे—जो उस समय अपने घरों के अंदर थे—वो बाहर निकल ही नहीं पाए और जिंदा जल गए।
कौन थे ये मासूम?
मृत बच्चों की पहचान स्थानीय महादलित परिवारों के बच्चों के रूप में हुई है। उम्र 3 से 10 साल के बीच थी। इन बच्चों के मां-बाप मजदूरी करते हैं और जिस समय हादसा हुआ, कुछ काम पर थे तो कुछ बाहर बैठे थे। हादसे की खबर मिलते ही माओं की चीखें, बापों की बेबसी और पूरे गांव का मातम हर दिल को झकझोर गया।
प्रशासन पर लगा लापरवाही का आरोप
इस घटना ने स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामीणों का दावा है कि दमकल विभाग को समय पर सूचना दी गई थी, लेकिन फायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ देर से पहुँचीं। जब तक आग पर काबू पाया गया, तब तक पूरा इलाका जलकर खाक हो चुका था।
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
यह पहला मौका नहीं है जब बिहार के गरीब तबके के इलाकों में ऐसी घटनाएं हुई हों। इससे पहले भी मुजफ्फरपुर और गया जैसे जिलों में महादलित बस्तियों में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। कारण लगभग एक जैसे होते हैं—पुरानी सिलेंडरें, जर्जर मकान, तंग गलियां और प्रशासनिक अनदेखी।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी जगहों पर सुरक्षा मानकों की अनुपस्थिति और सस्ती गैस कनेक्शन योजनाओं के दुरुपयोग के चलते हादसे होते हैं। कई बार पुराने सिलेंडर को बिना जांच के फिर से इस्तेमाल में लाया जाता है, जो बम की तरह फट सकते हैं।
अब क्या कर रहा है प्रशासन?
घटना के बाद जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक मौके पर पहुंचे और जांच के आदेश दिए गए हैं। प्रशासन की ओर से प्राथमिक सहायता के तौर पर कुछ पैसे और राशन देने की बात कही गई है, लेकिन पीड़ित परिवारों का कहना है कि जिन्होंने अपने बच्चे खोए हैं, उनके लिए अब कुछ भी मायने नहीं रखता।
सवाल जो अब भी बाकी हैं
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क्या समय रहते दमकल गाड़ी पहुंच जाती तो बच्चों की जान बच सकती थी?
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क्या महादलित बस्तियों की सुरक्षा के लिए सरकार कोई ठोस नीति बनाएगी?
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क्या ऐसे हादसों को रोकने के लिए गैस एजेंसियों की जवाबदेही तय होगी?
Muzaffarpur में हुआ यह हादसा सिर्फ एक अग्निकांड नहीं, बल्कि गरीबों की उपेक्षा और सरकारी तंत्र की सुस्ती का आईना है। चार मासूम जिंदगियाँ सिर्फ इसलिए चली गईं क्योंकि सिस्टम ने फिर से देर की। सवाल ये नहीं कि आग क्यों लगी, सवाल ये है कि आग बुझाने वाला इतनी देर से क्यों आया?
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