Jamshedpur Tragedy: डूबते किशोरों की लाशें निकालीं, जनता बोली- नेता और सिस्टम लापता!

जमशेदपुर के भुइयांडीह में सुवर्णरेखा नदी में डूबे दो किशोरों की मौत ने इलाके को झकझोर दिया है। प्रशासनिक निष्क्रियता और नेताओं की बेरुखी पर गुस्साए लोगों ने शव देने से भी इंकार कर दिया। पढ़िए पूरी खबर

Apr 24, 2025 - 13:08
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Jamshedpur Tragedy: डूबते किशोरों की लाशें निकालीं, जनता बोली- नेता और सिस्टम लापता!
Jamshedpur Tragedy: डूबते किशोरों की लाशें निकालीं, जनता बोली- नेता और सिस्टम लापता!

डूबते रहे हम, सिस्टम देखता रहा!"—यही चीख़ बन गई है जमशेदपुर के सिदगोड़ा भुइयांडीह के बाबूडीह झरना घाट की गलियों में गूंज रही आवाज़। सुवर्णरेखा नदी की गहराई ने दो किशोरों की ज़िंदगी को निगल लिया, लेकिन सबसे ज़्यादा डूबा तो जनता का भरोसा।

बुधवार को पहले किशोर का शव मिला और गुरुवार को दूसरे किशोर की लाश भी नदी से बरामद हुई। दोनों शवों को निकालने में किसी सरकारी एजेंसी की नहीं, बल्कि स्थानीय मछुआरों और ग्रामीणों की मेहनत लगी। न NDRF आई, न प्रशासन ने हाथ बढ़ाया, और न ही पुलिस ने तत्काल कोई मदद की।

बचपन की मौत पर व्यवस्था की चुप्पी

15 और 16 साल के ये दोनों किशोर नदी के किनारे खेलते समय फिसल कर डूब गए थे। हादसे के बाद स्थानीय लोगों ने तुरंत प्रशासन और एनडीआरएफ को कॉल किया—but कोई नहीं आया। जब लाशें स्थानीयों ने खुद निकाल लीं, तब जाकर पुलिस मौके पर पहुंची। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी—सिर्फ समय ही नहीं, भरोसा भी मर चुका था।

लोगों का गुस्सा फूटा, विधायक को घेरा

पुलिस की मौजूदगी पर गुस्साए लोगों ने शव को देने से इंकार कर दिया। उनका सीधा सवाल था—"जब मदद के लिए चीख रहे थे, तब कहां थे आप लोग?" विरोध इतना तेज़ था कि विधायक पूर्णिमा दास साहू को भी इसका सामना करना पड़ा। लोग चीख पड़े—"विधायक सिर्फ फोटो के लिए आती हैं, मदद के लिए नहीं!"

लोगों का आरोप था कि उन्होंने विधायक और उनके पीए से कई बार संपर्क किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। पीड़ित परिवारों ने बताया कि उन्हें नेताओं से कोई भावनात्मक या आर्थिक सहायता तक नहीं मिली।

इतिहास गवाह है: ये पहली बार नहीं

यह पहली बार नहीं है जब सुवर्णरेखा नदी ने किसी की जान ली हो। इतिहास में दर्ज कई हादसों में यही देखा गया है—प्राकृतिक आपदाओं या घटनाओं के समय प्रशासनिक मशीनरी या तो देर से पहुंचती है या बिल्कुल ही नदारद रहती है। एनडीआरएफ की टीम, जिसे आपातकालीन स्थिति में सबसे पहले सक्रिय होना चाहिए, अक्सर 'कागज़ों पर तैयार' दिखती है, जमीन पर नहीं।

सरकार की चुप्पी, जनता की आवाज़

घटना के बाद सोशल मीडिया पर भी लोगों ने जमकर प्रशासन की लापरवाही को लेकर विरोध जताया। स्थानीय नागरिकों ने कहा कि अगर यही रवैया रहा तो अगली बार कोई भी मदद के लिए प्रशासन की तरफ नहीं देखेगा। एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, "अब हमें खुद ही अपने बच्चों की सुरक्षा करनी होगी। सरकार सिर्फ घोषणाएं करती है, जमीनी हकीकत से कोसों दूर है।"

क्या मिलेगा जवाब या फिर बस मुआवज़ा?

सवाल उठता है कि क्या इस दर्दनाक हादसे के बाद कोई ठोस कदम उठाया जाएगा? क्या NDRF जैसी संस्थाएं सिर्फ दिखावे के लिए हैं? क्या नेताओं की संवेदनाएं सिर्फ चुनावी भाषणों तक सीमित हैं?

लोगों की आंखों में सिर्फ आंसू नहीं हैं—गुस्सा है, भरोसे का खून है और सिस्टम पर उठते सवाल हैं। जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलेगा, तब तक हर हादसा, एक नया विद्रोह बनकर उभरेगा।


जमशेदपुर की यह घटना सिर्फ दो मासूमों की मौत की कहानी नहीं, बल्कि एक नाकाम सिस्टम की पोल खोलने वाला आइना है। जब प्रशासन समय पर न पहुँचे, जब नेता संवेदनहीन बन जाएं, तब जनता के पास बस एक ही हथियार बचता है—विरोध। और इस बार वो हथियार चल चुका है।

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।