India Judiciary Crisis: 1.4 अरब लोगों के लिए सिर्फ 15 जज! क्या कभी मिलेगा इंसाफ?
भारत की न्यायिक व्यवस्था पर चौंकाने वाला खुलासा - प्रति 10 लाख लोगों पर सिर्फ 15 जज, जबकि विधि आयोग ने 50 की सिफारिश की थी। जानें कैसे जजों के खाली पद और 3 साल से लंबित मामले न्याय प्रणाली को धीमा कर रहे हैं।

भारत की न्यायिक व्यवस्था पर जारी 2025 की रिपोर्ट ने एक डरावनी तस्वीर पेश की है। देश में प्रति 10 लाख लोगों पर महज 15 न्यायाधीश हैं, जबकि 1987 के विधि आयोग ने इस संख्या को 50 तक पहुंचाने की सिफारिश की थी। यह आंकड़ा बताता है कि क्यों 5.5 करोड़ से अधिक मामले देश की अदालतों में लंबित हैं।
न्यायिक व्यवस्था के मुख्य संकट:
1. जजों की भारी कमी:
- कुल स्वीकृत पदों में से 33% रिक्त
- इलाहाबाद HC में 1 जज पर 15,000 मामले
- दिल्ली में प्रति जज 2,023 केस (2017 में 1,551)
2. लंबित मामलों का पहाड़:
- 50% HC मामले 3+ साल से लंबित
- दिल्ली में 10+ साल से लंबित 2% मामले
- बिहार, UP, बंगाल जैसे राज्यों में 40% से अधिक पुराने मामले
3. विविधता का अभाव:
- महिला जज: HC में सिर्फ 14%, SC में 6%
- ST जज: मात्र 5%, SC जज: 14%
- 25 HC में से सिर्फ 1 महिला CJI
क्यों फंसी है न्याय प्रणाली?
- बजट आवंटन: राज्य न्यायपालिका पर 1% से कम खर्च
- कानूनी सहायता: प्रति व्यक्ति सिर्फ ₹6.46/वर्ष
- भर्ती प्रक्रिया: HC जजों की नियुक्ति में वर्षों लगना
दिल्ली: एक उम्मीद की किरण
- सबसे कम रिक्तियां (11%)
- 45% महिला जज (राष्ट्रीय औसत 38.3%)
- केस क्लीयरेंस रेट 78% (राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बेहतर)
समाधान के रास्ते:
1. तुरंत भरें जजों के पद: 33% रिक्तियों को 6 महीने में
2. वैकल्पिक विवाद समाधान: लोक अदालतों और मध्यस्थता को बढ़ावा
3. डिजिटल अपग्रेड: ई-कोर्ट और वर्चुअल हियरिंग की संख्या बढ़ाएं
4. विविधता सुनिश्चित करें: SC/ST/OBC और महिला जजों की नियुक्ति बढ़ाएं
क्या आपको लगता है कि न्यायिक सुधारों पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए? हमें कमेंट में बताएं आपके सुझाव!
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