Chattogram Court: ISKCON के पूर्व मठाधीश चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका खारिज
चटगांव की अदालत ने ISKCON के पूर्व मठाधीश चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका खारिज की। जानिए इस मामले से जुड़े विवाद और इसके पीछे की पूरी कहानी।
चटगांव (Chattogram) की अदालत ने ISKCON के पूर्व मठाधीश चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका खारिज कर दी है। सुरक्षा के कड़े इंतजाम के बीच हुई इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के 11 वकीलों की टीम ने उनका प्रतिनिधित्व किया, लेकिन 30 मिनट की बहस के बाद भी अदालत ने जमानत याचिका को नामंजूर कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर, 2024 को ढाका एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ आरोप है कि उन्होंने 25 अक्टूबर को चटगांव में राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा झंडा फहराया। इस घटना को देशद्रोह करार देते हुए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
उनकी गिरफ्तारी के बाद ISKCON समर्थकों और पुलिस के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें एक वकील की मौत हो गई। यह विवाद तब और बढ़ गया जब 29 नवंबर को चिन्मय से मिलने गए ISKCON के दो अन्य भिक्षु, अदिपुरुष श्याम दास और रंगनाथ दास ब्रह्मचारी, को भी हिरासत में ले लिया गया।
चिन्मय कृष्ण दास का कानूनी पक्ष
गुरुवार को अदालत में चिन्मय कृष्ण दास का प्रतिनिधित्व करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के 11 वकीलों की टीम सुबह 10:15 बजे पहुंची। इस टीम का नेतृत्व अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने किया। उन्होंने कहा, “हमने चिन्मय के लिए अदालत में जमानत याचिका दायर की, लेकिन यह याचिका खारिज हो गई।“
चटगांव मेट्रोपॉलिटन सेशंस कोर्ट के जज एमडी सैफुल इस्लाम ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जमानत याचिका को नामंजूर कर दिया।
बांग्लादेश में ISKCON पर बढ़ा दबाव
चिन्मय की गिरफ्तारी के बाद से बांग्लादेश में ISKCON केंद्रों पर हमले और हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं। ISKCON कोलकाता के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने दावा किया कि चटगांव में उनके केंद्र को प्रदर्शनकारियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया।
भारत की प्रतिक्रिया
इस मामले पर भारत ने भी चिंता व्यक्त की है। विदेश मंत्रालय (MEA) ने बांग्लादेश में बढ़ती अल्पसंख्यकों पर हिंसा और चरमपंथी बयानबाजी को लेकर ढाका के सामने मुद्दा उठाया। भारत ने बांग्लादेश सरकार से यह सुनिश्चित करने की मांग की कि अल्पसंख्यक समुदायों को सुरक्षा दी जाए।
इतिहास में झांकें: ISKCON का बांग्लादेश में योगदान
ISKCON (इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस) की स्थापना 1966 में हुई थी और यह हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए प्रसिद्ध है। बांग्लादेश में इसका प्रभावशाली योगदान रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बढ़ते हमले और धार्मिक उन्माद ने इन केंद्रों के लिए कई समस्याएं खड़ी की हैं।
अदालत का फैसला और अगला कदम
यह मामला न केवल चिन्मय कृष्ण दास के लिए बल्कि बांग्लादेश में धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय की स्थिति के लिए भी महत्वपूर्ण है। अदालत का यह फैसला इस बात का संकेत है कि देश में धार्मिक और कानूनी मुद्दों पर चर्चा और विचार-विमर्श की जरूरत है।
चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका का खारिज होना बांग्लादेश में धार्मिक और कानूनी संघर्ष की ओर इशारा करता है। इस विवाद ने भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में भी एक नई बहस को जन्म दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि यह मामला किस दिशा में आगे बढ़ता है।
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