Samwad Jamshedpur: धरती आबा बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि के साथ संवाद 2024: जनजातीय संस्कृति का सबसे बड़ा उत्सव जमशेदपुर में शुरू!
जमशेदपुर के गोपाल मैदान में संवाद 2024 का भव्य आगाज, जहां 401 नगाड़ों की गूंज, 100+ स्टॉल्स और जनजातीय होम कुक्स के व्यंजन पेश किए गए। जानें कैसे यह कार्यक्रम जनजातीय संस्कृति का जीवंत प्रतीक बना।"
जमशेदपुर बना जनजातीय संस्कृति का केंद्र: संवाद 2024 का भव्य शुभारंभ
जमशेदपुर का गोपाल मैदान इस वर्ष एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का साक्षी बना। संवाद 2024 का 11वां संस्करण, जिसमें देशभर की जनजातीय संस्कृतियों की झलक देखने को मिली, का शुभारंभ धरती आबा बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हुआ। इस आयोजन में झारखंड और ओडिशा की 22 जनजातियों का प्रतिनिधित्व हुआ। 401 नगाड़ों की गूंज और अद्वितीय जनजातीय कला ने आयोजन को जीवंत कर दिया।
धरती आबा बिरसा मुंडा: जनजातीय स्वाभिमान का प्रतीक
संवाद 2024 का शुभारंभ धरती आबा बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए किया गया। बिरसा मुंडा न केवल झारखंड बल्कि पूरे भारत के जनजातीय इतिहास का एक अहम हिस्सा हैं। उनका जीवन संघर्ष और क्रांति की कहानी है। 19वीं सदी में जब ब्रिटिश शासकों ने आदिवासी समुदाय की जमीन और संस्कृति पर प्रहार किए, तब बिरसा मुंडा ने 'उलगुलान' का नेतृत्व किया। यह आंदोलन अंग्रेजों और स्थानीय जमींदारों के खिलाफ एक बड़ी क्रांति थी, जो जनजातीय स्वाभिमान और अधिकारों का प्रतीक बन गया।
बिरसा मुंडा ने न केवल जनजातीय समाज को एकजुट किया, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी बनने की प्रेरणा भी दी। आज उनकी जयंती पूरे देश में "जनजातीय गौरव दिवस" के रूप में मनाई जाती है। संवाद 2024 का आयोजन इसी गौरवशाली इतिहास को सम्मानित करने का प्रयास है।
संवाद 2024: कला, संस्कृति और परंपरा का महाकुंभ
गोपाल मैदान में आयोजित इस भव्य कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण जनजातीय संस्कृति और परंपराओं का जश्न है। 100 से अधिक स्टॉल्स पर जनजातीय कला, हस्तशिल्प, और 100 जनजातीय होम कुक्स द्वारा तैयार पारंपरिक व्यंजन प्रदर्शित किए गए।
इन स्टॉल्स में कारीगरों, कलाकारों, और हीलर्स ने अपने प्राचीन ज्ञान और कहानियों को साझा किया। इन कलाकृतियों में जनजातीय इतिहास और परंपराओं की झलक देखने को मिली, जो आधुनिक युग में भी अपनी मौलिकता बनाए हुए हैं।
401 नगाड़ों की गूंज से सजी उद्घाटन प्रस्तुति
उद्घाटन समारोह में 401 नगाड़ों की गूंज ने गोपाल मैदान को संस्कृति और ऊर्जा से सराबोर कर दिया। यह प्रस्तुति झारखंड और ओडिशा की जनजातियों की एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक थी। इस कार्यक्रम में 'कलर्स ऑफ झारखंड' समूह ने अद्भुत प्रदर्शन किया। इसके बाद नागपुरी बैंड की प्रमुख गायिका गरिमा एक्का ने अपनी सुमधुर आवाज से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के लिए मंच: 'अखड़ा'
संवाद का केंद्र 'अखड़ा' बना, जो आदिवासी समाज की सामूहिक बैठकों की पारंपरिक अवधारणा पर आधारित है। 'अखड़ा' ने जनजातीय समुदायों को एक स्थायी मंच प्रदान किया है, जहां वे अपनी चुनौतियों, दृष्टिकोण और अनुभवों पर चर्चा कर सकते हैं।
संवाद के इस संस्करण में 200 से अधिक नए प्रतिभागियों ने भाग लिया। ये प्रतिभागी पिछले 10 वर्षों में संवाद के माध्यम से प्रेरित होकर इस मंच का हिस्सा बने हैं।
टाटा स्टील की भागीदारी और समर्थन
इस ऐतिहासिक आयोजन में टाटा स्टील ने एक बार फिर अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को दिखाया। टाटा स्टील लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और टाटा स्टील फाउंडेशन के चेयरमैन टी वी नरेंद्रन, वाइस प्रेसिडेंट कॉरपोरेट सर्विसेज चाणक्य चौधरी, स्वतंत्र निदेशक दीपक कपूर, और डॉ. शेखर मांडे जैसे वरिष्ठ गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
टाटा स्टील ने जनजातीय संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संवाद 2024 इसका एक उदाहरण है, जो जनजातीय समुदायों को एकजुट कर उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाने का मंच प्रदान करता है।
प्रकृति और पारंपरिक व्यंजनों का संगम
कार्यक्रम में 100 जनजातीय होम कुक्स ने अपने पारंपरिक व्यंजनों को प्रस्तुत किया। इन व्यंजनों में स्थानीय और पारंपरिक स्वाद का अनूठा संगम देखने को मिला। 'जोहार हाट' और 'प्रकृति विहार' जैसे स्थानों पर इन व्यंजनों को प्रदर्शित किया गया।
ट्राइबल कल्चरल सेंटर, सोनारी में आयोजित कार्यशालाओं ने जनजातीय कला और ज्ञान को बढ़ावा देने का काम किया।
संवाद 2024: एकजुटता और संस्कृति का प्रतीक
संवाद न केवल एक कार्यक्रम है, बल्कि यह एक आंदोलन है, जो जनजातीय समुदायों के अधिकारों, परंपराओं और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
यह आयोजन हमें याद दिलाता है कि हमारी विविधता ही हमारी ताकत है। जब जनजातीय समाज के लोग अपनी परंपराओं और कलाओं को दुनिया के सामने रखते हैं, तो यह हमें अपने अतीत से जुड़ने और भविष्य के लिए प्रेरित करता है।
क्या यह आयोजन भारत के लिए एक उदाहरण है?
संवाद 2024 ने न केवल झारखंड बल्कि पूरे भारत को एक संदेश दिया है कि जनजातीय समाज हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं।
क्या आप भी इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बने? अपने अनुभव और विचार नीचे कमेंट करें!
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