Bihar Election 2025: प्रशांत किशोर का सनसनीखेज यू-टर्न! चुनाव लड़ने का ऐलान छोड़ पीछे हटे – क्या है असली वजह?

प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उतरने का जोरदार ऐलान किया था, लेकिन अचानक पीछे हट गए – क्या है इस यू-टर्न की असली वजह? क्या यह जन सुराज की रणनीति का हिस्सा है या जमीनी कमजोरी का डर? जानें इस फैसले के पीछे की सच्चाई!

Oct 15, 2025 - 11:38
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Bihar Election 2025: प्रशांत किशोर का सनसनीखेज यू-टर्न! चुनाव लड़ने का ऐलान छोड़ पीछे हटे – क्या है असली वजह?
Bihar Election 2025: प्रशांत किशोर का सनसनीखेज यू-टर्न! चुनाव लड़ने का ऐलान छोड़ पीछे हटे – क्या है असली वजह?

पटना, बिहार: बिहार की सियासत में एक और चौंकाने वाला मोड़! जन सुराज पार्टी के संस्थापक और 'चुनावी जादूगर' कहे जाने वाले प्रशांत किशोर (पीके) ने बुधवार को पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया कि वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में खुद मैदान में नहीं उतरेंगे। यह फैसला जन सुराज के 'व्यापक हित' में लिया गया है, लेकिन सवाल गूंज रहा है – इस यू-टर्न की असली वजह क्या है? कुछ महीने पहले पीके ने रघोपुर या करगहर से तेजस्वी यादव के खिलाफ सीधा मुकाबला करने का दावा किया था। अब अचानक संगठन निर्माण पर फोकस? क्या यह उनकी मशहूर रणनीति का हिस्सा है या जन सुराज की कमजोर जमीनी पकड़ का डर? बिहार की राजनीति में पीके के यू-टर्न्स का इतिहास पुराना है, लेकिन 2025 चुनाव से ठीक पहले यह कदम NDA और महागठबंधन की जंग के बीच नया तूफान ला सकता है।

प्रशांत किशोर का सफर यू-टर्न्स की कहानी है। 1977 में रोहतास के कोनार गांव में जन्मे पीके ने आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग छोड़कर संयुक्त राष्ट्र में आठ साल तक पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के रूप में काम किया। 2011 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा, जब गुजरात में नरेंद्र मोदी के लिए स्ट्रैटेजिस्ट बने। 'चाय पे चर्चा', 3डी रैलियां और 'मंथन' जैसे कैंपेन से उन्होंने 2012 में गुजरात और 2014 में लोकसभा चुनाव में भाजपा को शानदार जीत दिलाई। लेकिन 2015 में पहला बड़ा यू-टर्न: मोदी के करीबी से नीतीश कुमार के सलाहकार बने। उन्होंने महागठबंधन (RJD-JD(U)-कांग्रेस) को एकजुट कर 2015 बिहार विधानसभा में लालू-नीतीश को 178 सीटें जितवाईं। यह जीत 'जंगल राज' के बाद विकास की नई सुबह थी, लेकिन पीके की महत्वाकांक्षा यहीं नहीं रुकी।

2017 में कांग्रेस के साथ जुड़े, लेकिन उत्तर प्रदेश में बुरी हार मिली – भाजपा ने 300+ सीटें जीतीं, कांग्रेस को 7। यह उनकी पहली बड़ी नाकामी थी। फिर पंजाब 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिताया, लेकिन 2021 में AAP से टकराव के बाद यू-टर्न लिया। आंध्र प्रदेश में YSRCP को सलाह दी, तेलंगाना में TRS के खिलाफ लड़े, लेकिन असफल रहे। 2018 में नीतीश की JD(U) में उपाध्यक्ष बने, लेकिन 2020 में मतभेदों के कारण निष्कासित। 2020 में 'बात बिहार की' कैंपेन चलाया, लेकिन खुद न लड़ने का फैसला लिया – एक और यू-टर्न। तमिलनाडु में DMK को 2021 में जिताया, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को मजबूत किया। 2022 में जन सुराज आंदोलन शुरू किया, 2024 में इसे पार्टी बनाया। अब 2025 में फिर यू-टर्न – चुनाव न लड़ने का फैसला। क्या यह रणनीति है या हार का डर?

इस यू-टर्न की असली वजह क्या है? पीके ने कहा, "पार्टी ने फैसला लिया कि मेरा ध्यान अन्य उम्मीदवारों की जीत पर रहे।" रघोपुर से तेजस्वी के खिलाफ चंचल सिंह को उतारा गया है। लेकिन जानकारों का मानना है, यह रणनीतिक पीछे हटना है। जन सुराज ने 243 में से 51+65 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की, लेकिन पीके का नाम नहीं। 2024 बाय-इलेक्शन में पार्टी का वोट शेयर कम रहा। बिहार में जाति की राजनीति हावी है – यादव-मुस्लिम बनाम कुर्मी-कोइरी। पीके का फोकस विकास पर है, लेकिन कार्यकर्ता आधार कमजोर है। एक पूर्व सहयोगी ने कहा, "पीके स्ट्रैटेजिस्ट हैं, मैदान में उतरने से इमेज खराब हो सकती है। हार मिली तो 'चुनावी जादूगर' की साख डूबेगी।" भाजपा नेता प्रदीप भारद्वाज ने एक्स पर तंज कसा, "पीके डिपॉजिट तक हार जाएंगे, इसलिए भागे।" RJD ने इसे 'कायरतापूर्ण' कहा।

पीके ने वादों पर जोर दिया: सरकार बनी तो भू-माफिया, बालू माफिया से मुक्ति। छह बड़े वादे – फर्जी शराबबंदी खत्म, एक महीने में 100 भ्रष्ट नेताओं-अफसरों पर मुकदमा, अवैध संपत्ति जब्त कर विकास में लगाना। "ये भ्रष्ट लोग डर जाएंगे, बिहार का विकास इन्हीं की वजह से रुका है," उन्होंने कहा। यह वादा बिहार के इतिहास से जुड़ता है – लालू के जंगल राज में माफिया फले-फूले, नीतीश के 20 सालों में सुधार हुआ लेकिन भ्रष्टाचार बरकरार। पीके का मॉडल विकास-केंद्रित है, लेकिन यू-टर्न ने सवाल उठाए।

चुनावी संभावनाओं पर पीके ने कहा, "या तो भारी जीतेंगे या पूरी हार। 10 से कम या 150 से ज्यादा सीटें। बीच का रास्ता नहीं।" त्रिशंकु पर बोले, "120-130 सीटें भी हार होगी।" जीत पर बिहार को टॉप 10 विकसित राज्यों में लाने का मिशन, हार पर सड़क-संगठन की राजनीति। यह बयान उनके स्टाइल को दर्शाता है – या सब कुछ, या कुछ नहीं। लेकिन इतिहास गवाह है: 2015 में महागठबंधन को 178 सीटें, 2020 में NDA की जीत में भूमिका। अब जन सुराज तीसरा विकल्प बनने की कोशिश में है, लेकिन यू-टर्न ने कैंपेन को कमजोर किया।

बिहार 2025 चुनाव नवंबर में दो चरणों में होंगे – 6 और 11 को। NDA और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर। पीके का यू-टर्न जन सुराज को कितना नुकसान पहुंचाएगा? क्या यह रणनीति है या कमजोरी? बिहार के युवा, जो पलायन से तंग हैं, विकास के वादों पर भरोसा करेंगे या जाति की राजनीति पर? पीके का सफर सिखाता है – चुनावी जादू में यू-टर्न जरूरी हैं, लेकिन बिहार की मिट्टी में जड़ें जमाना पड़ता है। क्या जन सुराज इतिहास रचेगा या इतिहास का शिकार बनेगा? समय बताएगा।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।