Sanchi Contribution: भारतीय ज्ञान परंपरा में बौद्ध साहित्य का अद्वितीय योगदान, जानिए सॉंची की ऐतिहासिक यात्रा से जुड़े दिलचस्प पहलू
भारतीय ज्ञान परंपरा में बौद्ध दर्शन और साहित्य का अद्वितीय योगदान रहा है। सॉंची की ऐतिहासिक यात्रा और डॉ. महेश शर्मा के अनुभवों के जरिए जानिए कैसे बौद्ध संस्कृति ने विश्व पटल पर भारत की छवि को निखारा।
भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा में बौद्ध दर्शन और साहित्य ने एक अमिट छाप छोड़ी है। इसी धरोहर का जीवंत उदाहरण है मध्यप्रदेश का सॉंची, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सर्वोच्च स्थान पर दर्ज है। हाल ही में भिलाई निवासी और बौद्ध साहित्य में डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने सॉंची की एक सफल सांस्कृतिक यात्रा पूरी की, जिसके बाद उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा में बौद्ध साहित्य के महत्व को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें साझा कीं।
सॉंची का ऐतिहासिक महत्त्व केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए बौद्ध संस्कृति का एक अद्वितीय केंद्र है। सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए बौद्ध स्तूपों, तोरण द्वारों, चैत्यालयों और विहारों में आज भी भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी अनेक जातक कथाओं का सुंदर चित्रण देखा जा सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल भोपाल द्वारा यहां के स्मारकों का संरक्षण और संवर्धन किया जा रहा है, ताकि यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनी रहे।
डॉ. शर्मा ने बताया कि नई शिक्षा नीति के संदर्भ में आज देशभर के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में व्यापक मंथन चल रहा है। बौद्ध साहित्य इसमें एक अहम स्तंभ के रूप में उभर रहा है। सॉंची में भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं से जुड़ी विरासत हर कोने में बिखरी हुई है। श्रीलंका की महाबोधि सोसायटी द्वारा बनवाया गया भव्य बुद्ध मंदिर और चैत्यगिरि क्षेत्र के अन्य स्मारक भी यहां के दर्शनीय स्थलों में शामिल हैं।
डॉ. शर्मा ने अपनी यात्रा के अनुभव साझा करते हुए एक दिलचस्प संयोग का जिक्र किया। सॉंची यात्रा के दौरान अमेरिका से प्रोफेसर गैब्रिएला निकेलेवा और डॉ. अशोक ओझा के नेतृत्व में छात्रों और प्रोफेसरों का एक दल भी शैक्षणिक भ्रमण के लिए वहां पहुँचा था। इस मुलाकात ने यह संभावना जगाई कि भारतीय ज्ञान और विज्ञान परंपरा को अमेरिकी शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान मिल सकता है, जिससे भारत पुनः विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
डॉ. शर्मा की इस ऐतिहासिक यात्रा में उनके परिवार का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके साथ उनकी पत्नी श्रीमती रजनी गौरी शर्मा, श्री अंकित शुक्ल, श्रीमती कनिष्ठा शुक्ल, चि. अगस्त्य शुक्ल और चि. अद्वैत शुक्ल भी यात्रा में शामिल रहे और इस अद्भुत अनुभव को साझा किया।
इतिहासकारों के अनुसार, बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में सम्राट अशोक का योगदान अविस्मरणीय रहा है। सॉंची न केवल भारत में बौद्ध संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह दुनिया भर के श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं के लिए भी एक प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है। आज भी सॉंची के प्राचीन स्तूपों की दीवारें बुद्ध के उपदेशों की गूँज से भरती प्रतीत होती हैं।
भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनरुत्थान में सॉंची की भूमिका और डॉ. महेश शर्मा जैसे विद्वानों के प्रयास निश्चित ही भारत को फिर से सांस्कृतिक नेतृत्व प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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