ज़िंदगी के रंग - स्वरचित अनामिका मिश्रा
ग़ज़ल
भरोसा मुझे है मेरी बंदगी का,
न छोड़ें कभी हम मज़ा ज़िंदगी का।
लगा आना जाना सभी का यहांँ पर,
करो जी हजूरी मगर हर किसी का।
है आसान सब कुछ करें कोशिशें तो,
न दुखड़ा सुनाओ यूँ तुम बेबसी का।
न सब कुछ मिले हैं हमें ज़िंदगी में,
नहीं ग़म करो आज कोई कमी का।
मुहब्बत निभाना न आता उन्हें हैं,
सबब है ना अहसास भी बेकली का।
मुखौटा पहन घूमते लोग देखो,
जगह ही न दिल में यहांँ बेकसी का।
'अना' छेड़ते लोग ले इंतहा है,
उन्हें कुछ असर भी नहीं खामुशी का।
स्वरचित अनामिका मिश्रा
जमशेदपुर, झारखंड
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