ज़िंदगी के रंग - स्वरचित अनामिका मिश्रा

Jul 9, 2024 - 11:58
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ज़िंदगी के रंग - स्वरचित अनामिका मिश्रा

ग़ज़ल


भरोसा मुझे है मेरी बंदगी का,
न छोड़ें कभी हम मज़ा ज़िंदगी का।

लगा आना जाना सभी का यहांँ पर,
करो जी हजूरी मगर हर किसी का।

है आसान सब कुछ करें कोशिशें तो,
न दुखड़ा सुनाओ यूँ तुम बेबसी का।

न सब कुछ मिले हैं हमें ज़िंदगी में,
नहीं ग़म करो आज कोई कमी का।

मुहब्बत निभाना न आता उन्हें हैं,
सबब है ना अहसास भी बेकली का।

मुखौटा पहन घूमते लोग देखो,
जगह ही न दिल में यहांँ बेकसी का।

'अना' छेड़ते लोग ले इंतहा है,
उन्हें कुछ असर भी नहीं खामुशी का।

स्वरचित अनामिका मिश्रा
जमशेदपुर, झारखंड

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।