उड़ता युवा - सुनील कुमार खुराना
आज के युग का उड़ता युवा । खेल रहा वह जीवन से जुआ ।। युवाओं की आज बिगड़ी संगत । संगत से ही मिलती सदा रंगत ।।.....
उड़ता युवा
आज के युग का उड़ता युवा ।
खेल रहा वह जीवन से जुआ ।।
युवाओं की आज बिगड़ी संगत ।
संगत से ही मिलती सदा रंगत ।।
गफलत में होते आज के युवा ।
नहीं देखते आगे खाई है या कुआं ।।
सब युवा करते अपनी मनमानी ।
नशें में बर्बाद कर रहे जिंदगानी ।।
घर-घर में हो रहा नशे से नाश।
युवा कर जीवन का सत्यनाश ।।
समझ नहीं पा रहे इसका आभास ।
रिश्तों में नशा ला रहा सबके खटास ।।
आज गली मोहल्ले में बने नशे के अड्डे ।
नशे के अड्डें वालों को मारने पड़ेंगें डंडे ।।
युवाओं को नशे से सबको बचाना है ।
अपना भारत देश नशा मुक्त बनाना है ।
स्वरचित और मौलिक कविता
सर्वाधिकार सुरक्षित
सुनील कुमार खुराना
नकुड़ सहारनपुर
उत्तर प्रदेश भार
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