Hatia Tragedy: ट्रेन सफर में गर्भवती महिला की दर्दनाक मौत, पति की बेबसी ने झकझोरा
हटिया रेलवे स्टेशन पर गर्भवती महिला की ट्रेन सफर में दर्दनाक मौत, पति की आर्थिक बेबसी ने झकझोर दिया। इलाज के लिए पैसे न जुटा पाने की मजबूरी ने छीन ली जिंदगी।

रेल यात्रा हमेशा उम्मीदों और घर लौटने की खुशी से भरी होती है, लेकिन कभी-कभी यह सफर एक ऐसा मोड़ ले लेता है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होती। बुधवार को हटिया रेलवे स्टेशन पर ऐसा ही एक दिल दहला देने वाला हादसा सामने आया, जब चार माह की गर्भवती महिला सोनी देवी (29 वर्ष) ने ट्रेन सफर के दौरान दम तोड़ दिया। उनके पति धनेश्वर कुमार भुइंया की बेबसी और आर्थिक तंगी की कहानी हर किसी की आंखें नम कर गई।
राउरकेला से शुरू हुई परेशानी
जानकारी के मुताबिक, सोनी देवी अपने पति के साथ एसएमवीटी बेंगलुरु–हटिया वीकली एक्सप्रेस से घर लौट रही थीं। बुधवार सुबह जैसे ही ट्रेन राउरकेला स्टेशन पर पहुंची, अचानक उन्हें तेज पेट दर्द की शिकायत हुई। पति ने तुरंत रेलवे कर्मचारियों से मदद मांगी। बानो स्टेशन पर प्राथमिक इलाज तो मिला, लेकिन हालत गंभीर थी।
हटिया पहुंचते ही सब खत्म
हटिया रेलवे स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी, पति ने पत्नी को जगाने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। आनन-फानन में रेलवे डॉक्टरों को बुलाया गया। जांच के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। एक पल में खुशियों से भरी यात्रा मातम में बदल गई।
आर्थिक तंगी बनी मौत का कारण?
इस घटना ने सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा कर दिया कि क्या गरीबी ने एक जिंदगी छीन ली?
धनेश्वर ने अधिकारियों को बताया कि उनकी पत्नी का इलाज मंगलुरु में चल रहा था। डॉक्टरों ने बेहतर चिकित्सा के लिए लगभग डेढ़ लाख रुपये खर्च का अनुमान बताया था। लेकिन एक मजदूर होने के नाते उनके लिए इतनी बड़ी रकम जुटाना असंभव था। मजबूरी में वह पत्नी को लेकर घर लौट रहे थे ताकि स्थानीय स्तर पर इलाज करा सकें।
कहां से थीं मृतका?
सोनी देवी का पैतृक गांव कदगांव (थाना मयूरहंड, चतरा जिला) है। पति मजदूरी करके किसी तरह परिवार का भरण-पोषण करता है। घर में आर्थिक संकट पहले से ही गहराया हुआ था और अब इस घटना ने पूरे परिवार को तोड़कर रख दिया।
इतिहास और सामाजिक पृष्ठभूमि
भारत में रेलवे यात्रा हमेशा से गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए जीवनरेखा रही है। हटिया स्टेशन, जो झारखंड के रांची जिले में स्थित है, कई प्रवासी मजदूरों और परिवारों के लिए घर लौटने की अहम कड़ी है।
इतिहास गवाह है कि आर्थिक तंगी के चलते कई बार परिवार समय पर इलाज न करा पाने के कारण अपने प्रियजनों को खो देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे 1990 और 2000 के दशक में बिहार-झारखंड क्षेत्र से हजारों मजदूर दक्षिण भारत काम की तलाश में गए और अक्सर इलाज या आपातकालीन स्थितियों में आर्थिक बाधाओं से जूझते रहे।
गांव में मातम और सवाल
गांव और इलाके में इस घटना से शोक की लहर है। ग्रामीणों का कहना है कि जब गरीब को इलाज के लिए सिर्फ पैसे की वजह से अपने प्रियजन की जान गंवानी पड़े, तो यह समाज और सिस्टम दोनों के लिए एक कड़वा सवाल है।
क्या कहता है यह हादसा?
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या भारत में अब भी गरीबों के लिए इलाज किसी लग्ज़री से कम है?
सोनी देवी की मौत सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर सवाल है जो अब भी गरीब मरीजों को पैसे के अभाव में मौत की ओर धकेल देती है।
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