Palamu Shocking Suicide : पत्नी ने दरवाज़ा नहीं खोला और पति ने दे दी जान, गांव में मातम और पुलिस जांच तेज़
पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र में युवक ने पत्नी के दरवाज़ा न खोलने पर आत्महत्या कर ली। घटना से गांव में मातम, पुलिस हर पहलू से जांच कर रही है।

झारखंड के पलामू जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। यह घटना जितनी साधारण सी वजह पर आधारित है, उतनी ही चौंकाने वाली भी है। सतबरवा थाना क्षेत्र के हुड़मुड गांव में एक युवक ने केवल इसलिए अपनी जान दे दी क्योंकि उसकी पत्नी ने रात में दरवाज़ा नहीं खोला।
देर रात लौटे पति और बंद दरवाज़ा
जानकारी के मुताबिक, मृतक युवक का नाम सुरेंद्र सिंह (24 वर्ष) था। वह मजदूरी करके सोमवार की रात करीब 11 बजे घर लौटा। उसने दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन पत्नी गायत्री देवी नींद में होने के कारण शायद आवाज़ नहीं सुन पाईं। गुस्से और निराशा में सुरेंद्र ने घर के पास ही एक पेड़ पर फांसी लगा ली।
सुबह दिखा खौफनाक मंजर
मंगलवार की सुबह ग्रामीणों की नज़र जब पेड़ पर लटके सुरेंद्र के शव पर पड़ी, तो गांव में अफरा-तफरी मच गई। लोग तुरंत पुलिस को सूचना देने दौड़े। कुछ ही देर में पूरे गांव में मातम छा गया। सुरेंद्र अपने पीछे पत्नी और एक साल के मासूम बेटे को छोड़ गया है।
परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। किसी को भरोसा नहीं हो रहा कि महज एक बंद दरवाज़े ने जिंदगी खत्म करने का बड़ा कारण बना दिया।
पुलिस जांच में जुटी
सतबरवा थाना प्रभारी विश्वनाथ कुमार राणा ने बताया कि प्रथम दृष्टया मामला आत्महत्या का लग रहा है। शव को पोस्टमार्टम के लिए मेदिनीनगर मेडिकल कॉलेज भेजा गया है। रिपोर्ट आने के बाद ही मौत की असली वजह साफ होगी। हालांकि पुलिस हत्या के एंगल को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर रही है।
गांव की प्रतिक्रियाएं
गांववालों के अनुसार, सुरेंद्र स्वभाव से थोड़ा चिड़चिड़ा किस्म का था, लेकिन उसने इस तरह का कदम उठाएगा, यह किसी ने सोचा भी नहीं था। ग्रामीणों का कहना है कि यह घटना रिश्तों में संवाद की कमी और मानसिक दबाव का नतीजा हो सकती है।
आत्महत्या के मामलों का इतिहास
भारत में आत्महत्या की घटनाओं का इतिहास चिंताजनक रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि हर साल लाखों लोग छोटी-छोटी बातों से आहत होकर अपनी जान दे देते हैं। झारखंड जैसे राज्यों में बेरोज़गारी, आर्थिक दबाव और घरेलू कलह आत्महत्या के प्रमुख कारण माने जाते हैं।
पलामू जिला पहले भी इस तरह की घटनाओं का गवाह रहा है। यहां कई बार छोटी घरेलू अनबन या आर्थिक तंगी के कारण लोगों ने आत्मघाती कदम उठाए हैं।
सवालों के घेरे में मानसिक स्वास्थ्य
यह घटना एक बड़ा सवाल खड़ा करती है – क्या हम मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से ले रहे हैं? एक मामूली सी बात अगर इंसान को आत्महत्या जैसे कदम तक ले जा सकती है, तो यह समाज और परिवार दोनों के लिए चेतावनी है।
भारत में अभी भी मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बातचीत नहीं होती। ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति और भी खराब है। लोग अपनी तकलीफों को अंदर ही दबाए रहते हैं और नतीजतन ऐसे हादसे सामने आते हैं।
परिवार पर टूटा दुख का पहाड़
सुरेंद्र की मौत से उसकी पत्नी और छोटा बेटा बेसहारा हो गए हैं। गांववाले अब परिवार को ढांढस बंधा रहे हैं। ग्रामीण यह भी कह रहे हैं कि यदि सुरेंद्र ने किसी से अपनी नाराज़गी या दुख साझा किया होता, तो शायद यह घटना टल सकती थी।
पलामू की यह घटना सिर्फ एक परिवार का व्यक्तिगत दुख नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए सबक है। संवाद की कमी और गुस्से पर काबू न पाने ने एक युवा जिंदगी को खत्म कर दिया। अब सवाल यह है कि क्या हम इन घटनाओं से सीखकर अपने परिवार और रिश्तों में संवेदनशीलता ला पाएंगे?
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