Chhat Puja 2025: छठ में क्यों लौट रहे हैं परदेसी और कहां से शुरू हुआ यह पर्व? सूर्य की पूजा के पीछे का वह 'वैज्ञानिक रहस्य' जानकर चौंक जाएंगे!
क्या आप जानते हैं कि छठ पूजा सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक चमत्कार है? कार्तिक माह में क्यों बढ़ जाती है सूर्य की पराबैंगनी किरणें? मुंगेर के सीता चरण मंदिर से कैसे जुड़ा है इस महान पर्व का इतिहास? जानें नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक की पूरी तारीख और पर्देसी लोगों की घर वापसी की भावुक कहानी!
झारखंड, 25 अक्टूबर 2025 - बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड सहित नेपाल के तराई क्षेत्रों में लोक आस्था का सबसे महान पर्व छठ पूजा शुरू हो चुका है। आज, 25 अक्टूबर 2025 (शनिवार) से 'नहाय-खाय' के साथ चार दिनों के इस कठिन व्रत और तपस्या की शुरुआत हो रही है। यह पर्व सिर्फ पूजा-अर्चना नहीं है, बल्कि यह अनुशासन, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और सबसे बड़ी बात, एक गहरे वैज्ञानिक सत्य का भी प्रतीक है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
परदेसी की घर वापसी: अस्तित्व का सबसे बड़ा पर्व
कार्तिक माह की छठ पूजा को लेकर इस समय दिल्ली, मुंबई, हरियाणा, पंजाब और आंध्र प्रदेश सहित अन्य राज्यों से आने वाले यात्री वाहनों में असाधारण भीड़ देखने को मिल रही है। रोजी-रोटी की तलाश में घर से दूर रहने वाले झारखंड, बिहार और पूर्वी यूपी के लोग, इस पर्व में शरीक होने के लिए खड़े होकर भी सफर करने को मजबूर हैं।
एक यात्री ने बताया, “पूरे* साल हम कहीं भी रहें, लेकिन छठ में घर आना अनिवार्य है। यह सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि परिवार के साथ हमारी संस्कृति और अस्तित्व का सबसे बड़ा पर्व *है।”
वैज्ञानिक रहस्य: क्या छठ सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है?
पारंपरिक मान्यताओं के अलावा, छठ पर्व एक अद्वितीय खगोलीय और वैज्ञानिक घटना से भी जुड़ा हुआ है।
ज्योतिषीय गणना बताती है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि (छठ) को सूर्य की परा बैंगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं।
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विशेष स्थिति: सूर्यास्त और सूर्योदय के समय, जब सूर्य की किरणें वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होकर पृथ्वी पर पहुँचती हैं, तो वे और भी सघन हो जाती हैं।
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वैज्ञानिक लाभ: छठ व्रत का पालन करने से मनुष्य को इन पराबैंगनी किरणों के संभावित कुप्रभावों से रक्षा करने की शक्ति मिलती है।
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कीटाणुओं का खात्मा: इस विशेष धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य और जीवन को लाभ होता है।
इसलिए, छठ व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक रक्षा कवच भी है, जो खगोलीय परिवर्तनों के अनुकूल होकर मानव कल्याण को सुनिश्चित करता है।
छठ का ऐतिहासिक आधार: द्रौपदी और सीता का संबंध
छठ व्रत के इतिहास के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं:
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महाभारत काल: ऐसी मान्यता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब श्री कृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने यह व्रत रखा था, जिससे उन्हें अपना राजपाट वापस मिला।
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मुंगेर का सीता चरण मंदिर: सबसे महत्वपूर्ण कथा मुंगेर के सीता मनपत्थर (सीता चरण) मंदिर से जुड़ी है, जो गंगा के बीच में स्थित एक शिलाखंड पर है। माना जाता है कि माता सीता ने पहली बार मुंगेर में ही छठ पर्व मनाया था, जिसके बाद ही इस महापर्व की शुरुआत हुई।
छठ पूजा 2025 का पूरा कैलेंडर
| पर्व | तिथि (2025) | दिन | विशेष अनुष्ठान |
| नहाय-खाय | 25 अक्टूबर | शनिवार | आत्मशुद्धि और शुद्ध भोजन |
| खरना | 26 अक्टूबर | रविवार | निर्जल व्रत, शाम को गुड़-खीर प्रसाद |
| पहला अर्घ्य | 27 अक्टूबर | सोमवार | डूबते सूर्य को अर्घ्य (शाम 5:40 बजे) |
| दूसरा अर्घ्य | 28 अक्टूबर | मंगलवार | उगते सूर्य को अर्घ्य (सुबह 6:30 बजे) |
'कांच ही बांस के बहंगिया' और 'केलवा के पात पर' जैसे पारंपरिक गीतों से इस समय पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा है। छठ पूजा वास्तव में लोक आस्था, विज्ञान और कठोर अनुशासन की एक अद्वितीय मिसाल है।
पाठकों से सवाल:
आपके अनुसार, छठ पूजा के दौरान नदी और घाटों की सफाई का जो संदेश दिया जाता है, क्या उसे पूरे साल बनाए रखना संभव नहीं है? कमेंट करके अपनी राय ज़रूर बताएं।
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