दुर्गा पूजा का अंतिम दिन: सिंदूर खेला की परंपरा और सौभाग्य की कामना
दुर्गा पूजा के अंतिम दिन सिंदूर खेला की परंपरा का पालन किया जाता है, जिसमें बंगाली हिंदू महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सौभाग्य और पतियों की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
दुर्गा पूजा के नौ दिनों के भव्य उत्सव के बाद, आखिरकार वह पल आ गया जब मां दुर्गा को विदा किया जाता है। पूजा के अंतिम दिन, बंगाली हिंदू महिलाएं "सिंदूर खेला" की परंपरा निभाती हैं, जो उनके लिए बहुत खास होता है। यह रस्म न केवल आस्था से जुड़ी होती है, बल्कि इसमें महिलाओं के बीच सौभाग्य और प्रेम का आदान-प्रदान भी होता है।
क्या है सिंदूर खेला की परंपरा?
सिंदूर खेला एक विशिष्ट बंगाली हिंदू परंपरा है, जिसमें विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और मां दुर्गा को भी सिंदूर अर्पित करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यह रस्म महिलाओं के जीवन में सौभाग्य लाती है और उनके पतियों की उम्र को बढ़ाती है। यह दिन शादीशुदा महिलाओं के लिए खास होता है और वे साल भर इस रस्म का बेसब्री से इंतजार करती हैं।
विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य की कामना
सिंदूर खेला विवाहित महिलाओं के सौभाग्य और उनके पतियों की लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता है। यह रस्म उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि लाने का प्रतीक मानी जाती है। परंपरागत रूप से यह रस्म सिर्फ विवाहित महिलाओं द्वारा निभाई जाती है, लेकिन आजकल इस आयोजन में सभी महिलाएं, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, भाग ले सकती हैं।
मां दुर्गा की विदाई और सिंदूर की मस्ती
दुर्गा पूजा के दौरान मां दुर्गा के भक्तों के लिए यह दिन भावनात्मक रूप से बेहद महत्वपूर्ण होता है। मां दुर्गा की विदाई के समय सिंदूर खेला का आयोजन एक उत्सव के साथ किया जाता है, जिसमें महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं देती हैं। यह समारोह खुशी और आस्था का मिलाजुला प्रतीक होता है, जिसमें देवी दुर्गा को सम्मानित करते हुए उनके विदा होने की कामना की जाती है।
सिंदूर खेला का सांस्कृतिक महत्व
सिंदूर खेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि बंगाली समाज में यह एक सांस्कृतिक पहचान भी बन चुका है। हर साल दुर्गा पूजा के अंतिम दिन, विवाहित महिलाएं इस रस्म को निभाती हैं और यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। यह रस्म उन्हें एकजुटता, प्रेम और सौहार्द का प्रतीक बनाती है।
सिंदूर की शक्ति और आस्था
सिंदूर हिंदू धर्म में एक पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। यह सिर्फ एक रंग नहीं, बल्कि महिलाओं के वैवाहिक जीवन की खुशी, प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक है। जब महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, तो वह एक तरह से एक-दूसरे को आशीर्वाद देती हैं और अपने परिवारों के लिए मंगल की कामना करती हैं।
सिंदूर खेला महिलाओं के लिए अपने जीवनसाथी और परिवार की खुशियों की कामना करने का एक शुभ अवसर है। दुर्गा पूजा के इस अंतिम दिन, मां दुर्गा की विदाई के साथ-साथ सिंदूर के खेल में भी एक अनोखी आस्था और परंपरा छिपी होती है, जिसे बंगाली हिंदू महिलाएं पूरे उत्साह के साथ निभाती हैं।
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