हजल - 7 - नौशाद अहमद सिद्दीकी,  भिलाई

रक्खा जिसे जतन से था मुझको अखर गया,  कुर्ता मेरा नया नया चूहा कुतर गया.....

Sep 27, 2024 - 14:15
Sep 27, 2024 - 14:37
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हजल - 7 - नौशाद अहमद सिद्दीकी,  भिलाई
हजल - 7 - नौशाद अहमद सिद्दीकी,  भिलाई

हजल 

  रक्खा जिसे जतन से था मुझको अखर गया, 
कुर्ता मेरा नया नया चूहा कुतर गया।  

खाते थे हम आम चुरा के जब बाग से, 
जानम वो बचपने का आलम गुजर गया।  

सबको ही दे रहा था किश्तों में वो खुशी, 
जब मैं गया तो जाने वो क्यों मुकर गया।   

आया था वक्त सरफिरे पेंटर के भेष में, 
सर के तमाम बाल जो सफेद कर गया।   

बेग़म ने कहा खाए हो किस किस की सेंडिलें, 
सूजा हुआ जो चेहरा ले के मैं घर गया।   

जो भी मिला उसी ने हो पागल समझ लिया, 
अपना फटा लिबास मैं लेकर जिधर गया।   

परियों के साथ था मैं ख्वाबों के देश में, 
काटा जो जमके मच्छर सपना बिखर गया।  

जिसको सुधार पाई ना पोलिस और जेल, 
शादी के बाद नौशाद, वो ही गुंडा सुधर गया।   

गज़लकार 
नौशाद अहमद सिद्दीकी, 
भिलाई

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।