ग़ज़ल - 16 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
गैर के सामने दामन न बिछाना भाई, आबरू भूल के अपनी न गंवाना भाई....
ग़ज़ल
गैर के सामने दामन न बिछाना भाई,
आबरू भूल के अपनी न गंवाना भाई।
लिख के ख़त अपना भी अहवाल बताते रहना,
जा के परदेश हमें भूल न जाना भाई।
जितनी औकात है उतने में ही रहना बेहतर,
उसके आगे न क़दम अपना बढ़ाना भाई।
तुम सुनाते रहे जो बज़्म ए अदब में वो ही,
फिर वही अपनी ग़ज़ल मुझको सुनाना भाई।
ईश्क और मुश्क छुपाने से कहीं छुपता है,
बेसबब होगा इसे अब तो छुपाना भाई।
सुनके रूदाद तेरी खूब हंसेगी दुनिया,
ग़में रूदाद फकत मुझको सुनाना भाई।
तजकेरा हुस्न का करता है फिजूल का ऐ नौशाद,
हो चुका इश्क का किस्सा भी पुराना भाई।
गज़लकार
नौशाद अहमद सिद्दीकी,
भिलाई
What's Your Reaction?