अपना गांँव - सुरेश सचान पटेल, कानपुर
देखो यह है अपना सुंदर,प्यारा-प्यारा गाॅ॑व हमारा। इस पीपल की छैयाॅ॑ में,बीता बचपन अपना सारा।.....
।।अपना गांँव।।
देखो यह है अपना सुंदर,प्यारा-प्यारा गाॅ॑व हमारा।
इस पीपल की छैयाॅ॑ में,बीता बचपन अपना सारा।
देखो गाॅ॑व का पनघट अपना,याद पुरानी आती है।
गाॅ॑व की गोरी गागर लेकर,यहाॅ॑ पानी भरने आती है।
सुबह- शाम इस पनघट पर, जुटता है गाॅ॑व सारा।
देखो यह है अपना सुंदर,प्यारा-प्यारा गाॅ॑व हमारा।
ये धूल भरे कच्चे रास्ते, मेरे गाॅ॑व की शान बढ़ाते हैं।
खेले थे खूब इन रास्तों में, बचपन की याद दिलाते हैं।
खंडहर बन कर आज खड़ा है,बचपन का स्कूल हमारा।
देखो यह है अपना सुंदर, प्यारा- प्यारा गाॅ॑व हमारा।
आम, नीम, पीपल, महुआ,ये वृक्ष अभी भी बुलाते हैं।
आगोश में मुझको लेने को, आतुर हो कर लहराते हैं।
पीपल पर बैठी कोयल काली,गाती है वही गीत पुराना।
देखो यह है अपना सुंदर, प्यारा - प्यारा गाॅ॑व हमारा।
रोज सुबह घर की मुंडेर में,कौवे रोटी खाने आते हैं।
चौबारे में अब भी बच्चे, नानी की कहानी सुनने आते हैं।
बागों में अब भी मस्त मयूरा, नाच दिखाता है प्यारा।
देखो यह है अपना सुंदर, प्यारा - प्यारा गाॅ॑व हमारा।
।।मौलिक और स्वरचित।।
सुरेश सचान पटेल
पुखरायाॅ॑,कानपुर देहात।
उत्तर प्रदेश।
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