Bihar Election 2025 : 243 कुर्सियों की जंग में कौन बनेगा जनता का भाग्यविधाता?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सियासी संग्राम और भी रोचक। एनडीए की एकजुटता के बीच राजद, कांग्रेस, आप, जन सुराज और बसपा ने सभी 243 सीटों पर अकेले लड़ने का ऐलान किया है। पढ़िए, क्यों बिहार की जीत से तय होगा दिल्ली का भविष्य।
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव इस बार अभूतपूर्व परिस्थितियों में लड़ा जा रहा है। हालात एकदम वैसे हैं, जैसे प्राचीन कहावत "एक अनार सौ बीमार"—यहां अनार सत्ता का सिंहासन है और बीमार वे तमाम राजनीतिक दल हैं, जो हर हाल में इसे हथियाना चाहते हैं। बिहार की 243 सीटें सत्ता का प्रतीक बन चुकी हैं और लगभग हर महत्वपूर्ण दल ने अकेले मैदान में उतरने का एलान कर दिया है।
इस चुनावी उत्साह के बीच एक बड़ा अंतर जरूर है—जहां विपक्षी खेमों में सीट-बंटवारे की जद्दोजहद और टूट-फूट की स्थिति है, वहीं एनडीए का गठबंधन अब तक मजबूत और एकजुट दिखाई देता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बिखरी हुई विपक्षी पार्टियां जनता का भरोसा जीत पाएंगी, या फिर एनडीए इस अवसर का लाभ उठाएगा?
प्रमुख पार्टियों ने किया जोरदार ऐलान
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास):
चिराग पासवान इस बार अपनी पूरी ताकत झोंकते दिख रहे हैं। जुलाई 2025 में उन्होंने साफ कहा कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर उतरेगी। चिराग की राजनीतिक रणनीति स्पष्ट है—वे खुद को न सिर्फ मुस्कुराते चेहरा बल्कि "बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट" का प्रतीक बनाकर स्थापित करना चाहते हैं।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद):
राजद प्रमुख तेजस्वी यादव ने सितंबर 2025 में एक बड़ी घोषणा करके राजनीतिक हलचल मचा दी। महागठबंधन में सीट-बंटवारे पर लगातार खींचतान चल रही थी। इन विवादों के बीच तेजस्वी ने साफ कर दिया कि राजद अब अकेले चुनाव लड़ेगा और बिहार की सभी 243 सीटों पर अपना जलवा दिखाएगा। यह कदम जहां उनके आत्मविश्वास को दर्शाता है, वहीं यह संकेत भी देता है कि महागठबंधन की जमीनी जकड़न कमज़ोर हो चुकी है।
आम आदमी पार्टी (आप):
मई-जून 2025 में आप ने भी चुनावी ऐलान किया कि वह बिहार की हर सीट पर चुनाव लड़ेगी। दिल्ली और पंजाब में की गई सरकारों के अनुभव के साथ आप चाहती है कि बिहार में भी वह एक विकल्प बने। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी पटना तक, आप इस बार शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर जनता को साधने की कोशिश करेगी।
जन सुराज पार्टी:
प्रशांत किशोर की पार्टी ने अगस्त 2024 में ही साफ कर दिया था कि वह हर सीट पर लड़ेगी। पीके का पूरा अभियान जनसंवाद यात्रा के सहारे गांव-गांव जाकर लोगों को जोड़ने पर केंद्रित है। जन सुराज का फोकस प्रणाली और पारदर्शिता पर है, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती संगठन और संसाधन की है।
कांग्रेस:
अप्रैल 2025 में कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव ने यह कहा था कि पार्टी 243 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है। लेकिन सवाल यही है कि संगठन के स्तर पर कमजोर पड़ चुकी कांग्रेस क्या वाकई पूरे मैदान पर दम दिखा पाएगी, या इतिहास की तरह इस बार भी केवल नाम मात्र की प्रतिस्पर्धा करेगी?
बहुजन समाज पार्टी (बसपा):
बसपा के राज्यसभा सांसद ने सितंबर 2024 में ही यह घोषणा कर दी थी कि बसपा सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बसपा की रणनीति साफ है—दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं में अपनी जड़ें गहरी करना। हालांकि, बिहार की वास्तविक राजनीति में बसपा अभी भी सीमित प्रभाव रखती है।
एनडीए बना एकजुट मोर्चा
जहां विपक्षी दल खुद को सबसे बड़ा खिलाड़ी दिखाने की होड़ में बिखर रहे हैं, वहीं एनडीए सशक्त रूप से मैदान में उतर रहा है। भाजपा, जदयू, हम और लोजपा(रामविलास का एनडीए से बाहर होने के बावजूद) जैसे सहयोगी दलों के बीच तालमेल अब तक मज़बूत है।
एनडीए की रणनीति इस बार स्पष्ट है:
सामूहिक उम्मीदवारों पर सहमति
जातीय समीकरणों का सूक्ष्म अध्ययन
मोदी-नीतीश का डबल इंजन विकास मॉडल
जातीय जनगणना से उत्पन्न समीकरणों का लाभ उठाना
विपक्ष के बिखराव के कारण एनडीए का गठबंधन और सुरक्षित लगता है।
बिहार की राष्ट्रीय राजनीति में अहमियत
बिहार केवल एक राज्य नहीं है, बल्कि केंद्र की सत्ता का बैरोमीटर है। इसके पीछे कई कारण हैं:
लोकसभा की 40 सीटें: दिल्ली की राजनीति में 40 सीटों वाला बिहार निर्णायक शक्ति रखता है।
जातीय समीकरण: बिहार में सामाजिक न्याय और जातीय राजनीति हमेशा से बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं।
राजनीतिक प्रयोगशाला: पिछड़ी जातियों, दलित और मुस्लिम वोट बैंक के कारण यह राज्य किसी भी पार्टी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर vote bank builder साबित हो सकता है।
केंद्र की दिशा तय करने वाला: 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बिहार ने केंद्र की सत्ता को बदलने और शक्ति देने का बड़ा काम किया था।
विजेता को क्या होगा लाभ?
अगर कोई पार्टी या गठबंधन बड़ी संख्या में सीटें जीतकर निकलता है, तो उसका लाभ केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा।
केंद्रीय सत्ता में सौदेबाजी की ताकत: जो पार्टी बिहार में बेहतर प्रदर्शन करेगी, वह केंद्र की राजनीति में अपनी जगह पक्की करेगी।
2029 लोकसभा चुनाव की तैयारी: बिहार की जीत के बाद राष्ट्रीय स्तर पर संदेश जाएगा कि यह पार्टी भविष्य की आकांक्षाओं के लिए तैयार है।
नई नेतृत्व छवि: तेजस्वी, चिराग या प्रशांत किशोर जैसे नेताओं का कद तभी बढ़ेगा जब वे विधानसभा में अच्छा प्रदर्शन करेंगे।
इस चुनाव में सबसे दिलचस्प बात यह है कि बिहार की जनता के सामने विकल्प की बाढ़ है। हर पार्टी अपनी ताकत और नए नारों के साथ चुनावी मैदान में है—एक तरफ एनडीए का गठबंधन और विकास का दावा है, तो दूसरी ओर एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रही विपक्षी पार्टियों का गठजोड़ (या उसका विघटन)।
2025 का यह संग्राम केवल बिहार की गद्दी का चुनाव नहीं है। यह 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए सेमीफाइनल है। सवाल है—क्या बिहार की जनता एनडीए के संयुक्त मोर्चे को ताकत देगी, या फिर विपक्ष के बीच से कोई नया नेता उभरकर केंद्र की राजनीति की दिशा बदल देगा?
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