PIND DAN RITUAL: गया सिर और गया कूप में पिंडदान से मिलेगा पितरों को मोक्ष, जानिए पूजा का पूरा महत्व
पितृपक्ष के दसवें दिन 16 सितंबर 2025 को गया सिर और गया कूप में पिंडदान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इससे पितरों को मोक्ष और शांति मिलती है। जानिए पूजा का विधान, पौराणिक कथा और लाभ।
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व माना जाता है। इस समय पर पितरों को याद कर उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। आज पितृपक्ष का ग्यारहवां और गया श्राद्ध का दसवां दिन है। इस दिन गया सिर और गया कूप जैसे पवित्र स्थलों पर पिंडदान करने की परंपरा निभाई जाती है। मान्यता है कि इन स्थलों पर पिंडदान करने से पितरों को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। साथ ही वे सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त हो जाते हैं।
गया सिर और गया कूप का विशेष महत्व है। गया सिर, विष्णुपद मंदिर से दक्षिण दिशा में स्थित है। इसे उन पितरों के लिए विशेष माना जाता है जो नरक में भोग रहे हैं। वहीं गया कूप एक पवित्र स्थल है, जहाँ पिंडदान और नारियल अर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। इन स्थलों पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है। परिवार में सुख-समृद्धि आने की भी मान्यता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, गया सिर और गया कूप की उत्पत्ति गयासुर राक्षस के सिर और नाभि से हुई थी। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने गयासुर का वध कर इन स्थलों को पवित्र बनाया। तभी से इन स्थलों पर पिंडदान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यह माना जाता है कि यहाँ पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और उनका कल्याण होता है।
पिंडदान का विधान भी खास होता है। पितृपक्ष के दसवें दिन गया सिर और गया कूप में पिंडदान करने का विशेष विधान है। यहाँ पूजा करने के बाद तीर्थयात्रियों को मां संकटा देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना करने की सलाह दी जाती है। इससे परिवार में सुख और शांति बनी रहती है। इस पूजा को करने से पितरों की आत्मा को संतोष और शांति मिलती है, और परिवार के सदस्य भी मानसिक और आध्यात्मिक राहत महसूस करते हैं।
गया सिर और गया कूप की यात्रा करने वाले श्रद्धालु मानते हैं कि यह पूजा न केवल पितरों के लिए कल्याणकारी है, बल्कि परिवार के लिए सुख, समृद्धि और स्थायी शांति लाती है। इसलिए पितृपक्ष में यहाँ पिंडदान करने की परंपरा बड़े श्रद्धा भाव से निभाई जाती है। इस दिन की पूजा से जुड़े धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक लाभ इसे विशेष बनाते हैं। यह परंपरा आज भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनी हुई है।
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