परछाई ( कविता ) - लता सूर्यप्रकाश ,केरला
लता सूर्यप्रकाश, कण्णकि नगर, मूत्तान्तरा, पालक्काड, केरला से हैं। वे एक अनुभवी और समर्पित लेखिका हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज के विभिन्न मुद्दों को उजागर किया है। लता की लेखन शैली प्रभावशाली और संवेदनशील है, जो पाठकों को गहराई से प्रभावित करती है। उनका योगदान साहित्य जगत में महत्वपूर्ण है और वे अपने लेखों के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करती हैं।
परछाई
यादें काफी है जीने केलिए
मगर जरूरत है तुम्हारी,
जिन्दगी की ज़ायका लेने को
दिल में तो मेरे जरूरत है
सिर्फ तुम्हारे थङकन की
मेरे ऑंगन के फूलों को जरूरत है तुम्हारे महक की
मेरे नैन तरसते सदा तेरे दर्शन के लिए
तेरे आवाज के गूंज की सिर्फ
मेरे कानों को
अजीब सी उलझन में पड़ी हूँ मैं ,
क्या कैसे ,किस से, क्यों कहूँ या
मूक रह जाय
खुशियाली और हरियाली सब जगह
मगर बीरान पड़ी है शायद एक दिल
काश किसीशायर की शायरी होती
गीत का सुर होता, हवा की खुशबू होती
पत्थर की मूर्ति होती, सागर की लहर होती,
मीरा की पायल होती, होती कान्हा की बांसुरी होती,
आती रहती ढेर सारी कल्पनाएँ
बिना किसी रोक टोक
यह भी तो सच है अजीब सा
मन के ख्यालों से छुटकारा
कौन पाया है आज तक?
शुभम
लता सूर्यप्रकाश
कण्णकि नगर, मूत्तान्तरा
पालक्काड केरला
What's Your Reaction?