Navratri Mahima: महाअष्टमी पर क्यों होती है मां चामुंडा की संधि पूजा, जानें चंड-मुंड वध की कथा
शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर मां चामुंडा की संधि पूजा क्यों की जाती है? जानें देवी के प्रकट होने की अद्भुत कथा और चंड-मुंड वध की रहस्यमयी गाथा।
भारत के त्योहारों की बात हो और उसमें नवरात्रि का ज़िक्र न आए, यह संभव ही नहीं। शारदीय नवरात्रि का हर दिन अपने आप में खास होता है, लेकिन महाअष्टमी का महत्व और भी बढ़ जाता है। 2025 में यह तिथि मंगलवार, 30 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन मां गौरी की पूजा और व्रत तो किया ही जाता है, साथ ही होती है संधि पूजा—एक ऐसी परंपरा, जो देवी के रौद्र रूप मां चामुंडा से जुड़ी है।
लेकिन आखिर क्यों महाअष्टमी पर मां चामुंडा की ही विशेष पूजा की जाती है? इसके पीछे छुपी है एक रोचक और ऐतिहासिक कथा, जो असुरों के आतंक और देवी की अद्भुत शक्ति का परिचय कराती है।
असुरों का आतंक और देवताओं की पुकार
पुराणों में वर्णित है कि प्राचीन काल में शुंभ और निशुंभ नामक दो असुरों ने तीनों लोक में आतंक मचा दिया था। उनका अत्याचार इतना बढ़ा कि स्वर्ग के देवताओं को भी अपना स्थान छोड़ना पड़ा। इंद्र को गद्दी से हटाकर शुंभ और निशुंभ ने देवलोक पर कब्ज़ा जमा लिया।
बेबस देवता ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई। विष्णु ने उन्हें मां जगदंबा की शरण लेने की सलाह दी। सभी देवताओं ने मिलकर देवी की कठोर उपासना की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी कौशिकी के रूप में प्रकट हुईं।
चंड-मुंड का घमंड और देवी का क्रोध
जब शुंभ और निशुंभ को देवी के प्रकट होने का समाचार मिला, तो उन्होंने अपने दो बलशाली सेनापति चंड और मुंड को देवी कौशिकी के पास भेजा। दोनों असुर अपनी शक्ति और घमंड में चूर होकर देवी को युद्ध की चुनौती देने लगे।
देवी ने उन्हें समझाने की कोशिश नहीं की, लेकिन जब उन्होंने बल प्रयोग किया, तब कौशिकी के क्रोध से जन्म हुआ मां चामुंडा का।
मां चामुंडा का प्रकट होना और चंड-मुंड वध
कहा जाता है कि जैसे ही मां चामुंडा प्रकट हुईं, उनके तेज से चारों दिशाएं कांप उठीं। उन्होंने पलक झपकते ही असुरों चंड और मुंड का संहार कर दिया। तभी से उन्हें ‘चामुंडा’ नाम मिला।
यह वध संधि काल में हुआ था—यानी अष्टमी और नवमी की संधि बेला पर। तभी से महाअष्टमी पर संधि पूजा की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि इस दिन मां चामुंडा की पूजा करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
महाअष्टमी और संधि पूजा का महत्व
महाअष्टमी पर रखे गए व्रत और संधि पूजा को सबसे शक्तिशाली अनुष्ठानों में गिना जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां चामुंडा को प्रसन्न करने से अचानक आने वाले संकट, रोग और शत्रु बाधाएं नष्ट हो जाती हैं।
पूजा के समय 108 दीपक जलाने, देवी के मंत्रों का जाप करने और कन्याओं का पूजन करने का विशेष महत्व है। संधि काल की यह पूजा मानो देवी की शक्ति को जगाने का प्रतीक है।
शास्त्रीय और ऐतिहासिक संदर्भ
दुर्गा सप्तशती और मार्कंडेय पुराण में चामुंडा की कथा विस्तार से मिलती है। यही वजह है कि बंगाल और असम जैसे राज्यों में संधि पूजा नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान मानी जाती है। यहां अष्टमी की रात हजारों श्रद्धालु मंदिरों और पंडालों में एकत्र होकर संधि पूजा का हिस्सा बनते हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि इस परंपरा का आरंभ गुप्तकाल में हुआ था और समय के साथ यह पूरे भारत में फैल गई।
आज के संदर्भ में महाअष्टमी
आधुनिक समय में भी महाअष्टमी का उत्सव वैसा ही जोश और आस्था लेकर आता है। मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं, भक्त उपवास रखते हैं और कन्याओं को भोजन कराकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
लोग मानते हैं कि मां चामुंडा की पूजा से न केवल व्यक्तिगत जीवन के कष्ट दूर होते हैं बल्कि परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का भी वास होता है।
महाअष्टमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि देवी की शक्ति और न्याय की याद दिलाने वाला दिन है। चंड और मुंड के वध की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जब भी अधर्म और अहंकार चरम पर पहुंचता है, तब शक्ति स्वयं प्रकट होकर धर्म की रक्षा करती है।
तो इस महाअष्टमी, क्या आप संधि पूजा का हिस्सा बनेंगे और मां चामुंडा से आशीर्वाद लेंगे?
What's Your Reaction?


