Bihar RJD Internal Conflict : लालू का कुनबा तेजस्वी के बढ़ते कद से आखिर क्यों डर रहा है ?
Lalu Yadav के परिवार में Tejashwi Yadav की बढ़ती ताकत से क्यों खलबली मची है? RJD में Sanjay Yadav को लेकर क्या है ये विवाद? जानिए Lalu परिवार की अंदरूनी कलह की पूरी कहानी और इसके राजनीतिक मायने।
पटना 18 सितंबर 2025 : बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) हमेशा से सुर्खियों में रहता है, लेकिन इस बार वजह है परिवार की अंदरूनी कलह। लालू प्रसाद यादव का परिवार तेजस्वी यादव की बढ़ती हुई कद-काठी से क्यों डर रहा है? क्या ये सिर्फ एक छोटी-मोटी नाराजगी है या पार्टी के भविष्य पर असर डालने वाली बड़ी साजिश? हाल ही में लालू की बेटी रोहिणी आचार्या का एक फेसबुक पोस्ट ने इस आग में घी डाल दिया है। ये पोस्ट सीधे-सीधे तेजस्वी के करीबी संजय यादव पर निशाना साधता है, जो आरजेडी में तेजस्वी की 'आंख और कान' बन चुके हैं। आइए, इस कहानी को गहराई से समझते हैं और देखते हैं कि ये विवाद कहां तक जा सकता है।
संजय यादव: तेजस्वी के 'साया' या 'साजिशकर्ता'?
संजय यादव, जो हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नांगल सिरोही गांव से ताल्लुक रखते हैं, आज आरजेडी के राज्यसभा सांसद हैं। लेकिन उनकी असली ताकत है तेजस्वी यादव के साथ उनकी गहरी दोस्ती। कहते हैं कि ये दोस्ती तेजस्वी के क्रिकेट खेलने के दिनों से शुरू हुई। जब लालू यादव को सजा हुई और वो जेल गए, तब तेजस्वी को पटना बुलाया गया। इसी दौरान संजय को बुलाया गया और वो तेजस्वी के सबसे भरोसेमंद सलाहकार बन गए। संजय ने आरजेडी की राजनीति को इस कदर बदला कि अब पार्टी का नाम लेते ही लालू की जगह तेजस्वी का चेहरा याद आता है।
लेकिन यही बात लालू परिवार में खटक रही है। मीसा भारती और तेज प्रताप यादव पहले से ही संजय के विरोधी माने जाते हैं। तेज प्रताप अक्सर 'जयचंदों' की बात करते हैं, और सबको पता है कि उनका इशारा संजय की तरफ है। संजय का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि पार्टी में कोई फैसला उनके बिना नहीं होता। ये प्रभुत्व न सिर्फ परिवार को चुभ रहा है, बल्कि पार्टी के दूसरे नेताओं को भी। क्या संजय तेजस्वी को लालू के साए से निकालने के सूत्रधार हैं, या वो खुद एक नई सत्ता बना रहे हैं? ये सवाल बिहार की राजनीति में गूंज रहा है।
रोहिणी आचार्या का फेसबुक पोस्ट: आग में घी का काम
गुरुवार की सुबह रोहिणी आचार्या ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर किया, जो पटना के आलोक कुमार का लिखा था। इस पोस्ट में तेजस्वी की 'बिहार अधिकार यात्रा' के दौरान उनकी बस की फ्रंट सीट पर संजय यादव के बैठने पर सवाल उठाया गया। आलोक ने लिखा, "फ्रंट सीट सदैव शीर्ष नेता के लिए चिन्हित होती है। उनकी अनुपस्थिति में भी किसी को उस पर नहीं बैठना चाहिए। वैसे अगर 'कोई' खुद को शीर्ष नेतृत्व से ऊपर समझ रहा है तो अलग बात है!" उन्होंने ये भी जोड़ा कि बिहार के लोग इस सीट पर सिर्फ लालू या तेजस्वी को देखने के अभ्यस्त हैं, और 'एक दोयम दर्जे के व्यक्ति' को वहां देखना मंजूर नहीं।
रोहिणी ने इस पोस्ट को बिना कोई कमेंट किए शेयर किया, लेकिन इसका मतलब साफ है - वो संजय से नाराज हैं। रोहिणी हाल ही में लोकसभा चुनाव में सारण सीट से बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी से बहुत कम अंतर से हारी थीं। अब उनकी विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है। क्या ये पोस्ट उनके राजनीतिक महत्वाकांक्षा का संकेत है? या परिवार में तेजस्वी की बढ़ती ताकत से पैदा हुई असुरक्षा? ये घटना दिखाती है कि लालू का कुनबा अब खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहा है।
परिवार की कलह के राजनीतिक मायने
लालू यादव का परिवार हमेशा से एकजुट दिखता रहा है, लेकिन तेजस्वी की उभरती छवि ने दरारें पैदा कर दी हैं। संजय यादव जैसे 'बाहरी' व्यक्ति का प्रभाव परिवार को स्वीकार नहीं हो रहा। मीसा, तेज प्रताप और अब रोहिणी - सबका विरोध बढ़ता जा रहा है। क्या ये कलह आरजेडी को कमजोर करेगी? बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और ये विवाद विपक्षी दलों जैसे बीजेपी और नीतीश कुमार की जेडीयू को फायदा पहुंचा सकता है।
तेजस्वी यादव की रणनीति संजय की बदौलत कामयाब हो रही है - पार्टी को युवा और आधुनिक लुक देना, सोशल मीडिया पर मजबूत मौजूदगी। लेकिन परिवार की नाराजगी अगर बढ़ी तो तेजस्वी को फैसला लेना पड़ सकता है। क्या वो पिता के साए से निकलकर अपनी राह बनाएंगे, या परिवार की एकता बनाए रखेंगे? ये देखना दिलचस्प होगा।
लालू का कुनबा तेजस्वी के बढ़ते कद से डर रहा है क्योंकि ये बदलाव की बयार है। संजय यादव जैसे रणनीतिकारों की वजह से आरजेडी नई ऊंचाइयों पर जा सकती है, लेकिन परिवार की कलह इसे पटरी से उतार भी सकती है। बिहार की राजनीति में ये ड्रामा अभी और रोचक मोड़ ले सकता है। क्या आप मानते हैं कि तेजस्वी अब लालू की विरासत से आगे निकल चुके हैं? कमेंट में बताएं!
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