Jharkhand Raid Drama: 100 एकड़ वनभूमि पर भू-माफिया-नेता गठजोड़ का खुलासा, ED-CID की बड़ी कार्रवाई

झारखंड में एक बार फिर बड़ा घोटाला सामने आया है। बोकारो की 100 एकड़ वन भूमि को लेकर ईडी और सीआईडी की संयुक्त कार्रवाई से सनसनी फैल गई है। जानिए पूरा मामला और कैसे जुड़े हैं नेता और माफिया।

Apr 22, 2025 - 13:31
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Jharkhand Raid Drama: 100 एकड़ वनभूमि पर भू-माफिया-नेता गठजोड़ का खुलासा, ED-CID की बड़ी कार्रवाई

झारखंड की सियासी और प्रशासनिक गलियों में उस वक्त हड़कंप मच गया जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम ने मंगलवार की सुबह रांची के लालपुर, कांके और हटिया इलाकों में एक साथ छापेमारी की। मामला जुड़ा है झारखंड के अब तक के सबसे बड़े वन भूमि घोटालों में से एक से, जहां भू-माफिया, नेताओं और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से करीब 100 एकड़ वन भूमि को खुर्द-बुर्द कर दिया गया।

ईडी की यह रेड सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं रही। बिहार और झारखंड मिलाकर कुल 15 ठिकानों पर एक साथ कार्रवाई की गई है। टारगेट पर हैं एक नामी कंस्ट्रक्शन कंपनी और उससे जुड़े लोग, जिन पर जमीन के फर्जीवाड़े का आरोप है।

क्या है बोकारो वन भूमि घोटाला?

इस पूरे मामले की जड़ें वर्ष 2022 में बोई गई थीं। बोकारो जिले के तेतुलिया मौजा की 100 एकड़ जमीन, जो कि असल में वन विभाग की भूमि थी, उसे भू-माफियाओं ने सरकारी अधिकारियों की मदद से एक निजी कंपनी के नाम करवा लिया।

असल घोटाले की शुरुआत साल 2013 में हुई, जब चास थाना अंतर्गत सर्वे प्लॉट नंबर 426/450 को जानबूझकर जंगल साल भूमि के बजाय "पुरानी परती" के रूप में दर्शाया गया। इससे इस ज़मीन को गैर-वन क्षेत्र घोषित करने का रास्ता खुल गया।

एक याचिका ने खोले घोटाले के दरवाज़े

इस फर्जीवाड़े का असली चेहरा तब सामने आया जब महेंद्र कुमार मिश्र नामक व्यक्ति ने CNT एक्ट की धारा 87 के तहत सिर्फ 10 डिसमिल ज़मीन को लेकर भारत सरकार के खिलाफ वाद दर्ज कराया (वाद संख्या: 4330/2013)। उस याचिका में बोकारो जिला प्रशासन की एंट्री हुई और धीरे-धीरे मामला बड़ा होता गया।

दिलचस्प बात यह है कि 2014 के बाद महेंद्र मिश्र ने खुद को इस पूरे प्रकरण से अलग कर लिया, लेकिन उनकी दाखिल याचिका से प्रशासन और भू-माफिया की सांठगांठ उजागर होने लगी।

अब CID और ED दोनों कर रहे जांच

बोकारो वन प्रमंडल के प्रभारी वनपाल रुद्र प्रताप सिंह की शिकायत पर 18 मार्च 2024 को सेक्टर-12 थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई। इसमें धारा 406, 420, 467, 468, 471, 120B/34 और फॉरेस्ट एक्ट की धाराएं भी लगाई गई हैं।

इसके बाद DGP अनुराग गुप्ता के निर्देश पर CID को मामले की जांच सौंपी गई। अब जबकि ED भी कूद पड़ी है, तो यह स्पष्ट है कि घोटाले का दायरा बहुत बड़ा और राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकता है।

रेड में क्या-क्या मिला?

ईडी सूत्रों के अनुसार, छापेमारी के दौरान संदिग्ध दस्तावेज, लेन-देन के रिकॉर्ड, डिजिटल सबूत और कई संपत्तियों से जुड़ी फाइलें जब्त की गई हैं। जांच एजेंसी अब इन दस्तावेजों की बारीकी से जांच कर रही है ताकि जमीन के असली मालिकों, फर्जीवाड़ा करने वालों और राजनीतिक संरक्षण देने वालों की पहचान की जा सके।

भू-माफिया और अफसरों की गहरी साठगांठ

प्राथमिक जांच से पता चला है कि भू-माफियाओं ने वन विभाग के कुछ अफसरों की मिलीभगत से जमीन को "परती भूमि" दिखाकर नियमों को ताक पर रख दिया। इसके बाद उस जमीन को कंस्ट्रक्शन कंपनी को हस्तांतरित कर दिया गया।

यह घोटाला सिर्फ एक कंपनी तक सीमित नहीं, बल्कि एक नेटवर्क के रूप में सामने आ रहा है, जिसमें राजनीतिक संरक्षण और अफसरशाही का नंगा नाच देखने को मिल रहा है।

झारखंड में जमीन घोटालों की लिस्ट लंबी है, लेकिन यह वन भूमि घोटाला इसलिए खतरनाक है क्योंकि इसमें पर्यावरण संरक्षण से समझौता किया गया है। साथ ही यह सवाल भी उठता है कि जिन अधिकारियों और राजनेताओं को आम जनता के हितों की रक्षा करनी थी, वही इस गोरखधंधे का हिस्सा बन गए।

अब देखना यह है कि ED और CID की यह संयुक्त कार्रवाई किस हद तक गुनहगारों को सलाखों के पीछे पहुंचा पाती है और क्या झारखंड की जनता को न्याय मिलेगा?

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।