Jamshedpur Suicide : मानसिक तनाव से जूझ रही महिला ने फांसी लगाकर दी जिंदगी को अलविदा
जमशेदपुर के सीतारामडेरा में 55 वर्षीय महिला ने आत्महत्या कर ली। पति की मौत के बाद अवसाद में थीं। बेटा घर लौटा तो मां को पंखे से लटका देखा। जानें पूरी कहानी।
जमशेदपुर : मंगलवार की दोपहर करीब 2:30 बजे सीतारामडेरा थाना क्षेत्र के होम पाइप कृष्णा नगर में एक खौफनाक घटना घटी। मोहल्ले की शांत और सरल स्वभाव की महिला माया रानी घोष (55 वर्ष) ने अपने ही घर में फांसी लगाकर जिंदगी को अलविदा कह दिया।
जब उनका बेटा तपन घोष काम से घर लौटा और दरवाजा खोला, तो सामने जो दृश्य था उसने उसे भीतर तक हिला दिया — उसकी मां पंखे से लटकी हुई थीं।
पुलिस की कार्रवाई
घटना की सूचना मिलते ही सीतारामडेरा थाना प्रभारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया। अगले दिन परिजनों को शव सौंप दिया गया।
प्रारंभिक जांच में पुलिस ने इसे आत्महत्या माना है। फिलहाल मामले में किसी प्रकार की आपराधिक साजिश की संभावना नहीं पाई गई।
मानसिक तनाव बना वजह
बेटे तपन घोष ने पुलिस को बताया कि उनकी मां लंबे समय से मानसिक तनाव और अवसाद (डिप्रेशन) से जूझ रही थीं। कुछ साल पहले उनके पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद माया रानी गहरे सदमे में चली गईं।
परिजनों के अनुसार, माया रानी का इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा था। हालांकि दवाइयों और परिवार की देखभाल के बावजूद वे मानसिक रूप से खुद को संभाल नहीं पा रही थीं।
पड़ोसियों की गवाही
मोहल्ले के लोग माया रानी को शांत और मिलनसार महिला के रूप में जानते थे। पति की मौत के बाद वे और भी अकेली हो गईं। पड़ोसियों ने बताया कि वे अक्सर खामोश रहतीं और ज्यादा मेलजोल नहीं करतीं।
पड़ोसियों का कहना है कि परिवार और मोहल्ले के लोग उन्हें सहारा देने की कोशिश करते रहे, लेकिन तनाव और अवसाद धीरे-धीरे उन पर हावी होता गया।
अवसाद और आत्महत्याओं का बढ़ता इतिहास
भारत में आत्महत्या के मामलों का इतिहास बेहद चिंताजनक रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि हर साल लाखों लोग अवसाद, तनाव और अकेलेपन के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
झारखंड जैसे राज्यों में ग्रामीण से लेकर शहरी इलाकों तक यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।
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2019 में जमशेदपुर में एक बैंक कर्मचारी ने अवसाद में फांसी लगा ली थी।
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2022 में बिष्टुपुर इलाके में भी एक महिला ने पारिवारिक तनाव में आत्महत्या कर ली थी।
यह घटनाएं बताती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर समाज और प्रशासन को गंभीरता से काम करने की जरूरत है।
सवालों के घेरे में समाज
माया रानी घोष की मौत ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लिया जाता है?
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क्या लोग अवसाद को अब भी ‘कमजोरी’ मानते हैं?
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क्या परिवार और पड़ोस की देखरेख पर्याप्त है?
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और सबसे बड़ा सवाल – क्या मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं आम जनता की पहुंच में हैं?
खामोशी की दर्दनाक कीमत
माया रानी घोष का जीवन और मौत हमें यह सिखाती है कि मानसिक तनाव को हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है। जिस महिला को मोहल्ला शांत स्वभाव की मानता था, उसी की खामोशी के भीतर सालों का दर्द और अकेलापन छिपा हुआ था।
अब समय है कि समाज मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो। क्योंकि एक खामोशी के पीछे छिपा दर्द, कभी भी एक जिंदगी को खत्म कर सकता है।
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