ग़ज़ल 1 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
ग़ज़ल
बरसात में जलता हुआ घर देख रहा हूं,,,
बरसात के आलम का गुज़र देख रहा हूँ,
हँसता हुआ मैं ख़ुद पे नगर देख रहा हूँ।
इससे भी बड़ा और अजूबा भी कोई है,
बरसात में जलता हुआ घर देख रहा हूँ।
बरसात के जैसे ही बरसने लगीं आँखें,
यह उसकी जुदाई का असर देख रहा हूँ।
बरसात में इक भीगी क्या गुज़री हसीना,
ख़ामोशी से मैं सबकी नज़र देख रहा हूँ।
इस बार की बरसात का आलम मैं कहूँ क्या,
हर ओर भरा जल है जिधर देख रहा हूँ।
नौशाद कोई ले ले ग़रीबों की ख़बर भी,
भूखे हैं कई दिन से बशर देख रहा हूँ।
नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
What's Your Reaction?