Ladakh Protest : सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी पर पत्नी का सुप्रीम कोर्ट में बड़ा कदम, आरोपों से हड़कंप
लद्दाख जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने नया मोड़ ले लिया है। उनकी पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर रिहाई की मांग की। जानिए पूरा मामला और लद्दाख आंदोलन का इतिहास।

लद्दाख के सामाजिक और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। वांगचुक, जो अपने जीवनभर लद्दाख के पर्यावरण और जनहित के मुद्दों पर संघर्ष करते रहे, आज राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत जेल में हैं। लेकिन अब इस मामले ने नया मोड़ ले लिया है, क्योंकि उनकी पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी हैं। उन्होंने अपने पति की तत्काल रिहाई की मांग करते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं।
पत्नी का दर्द और सुप्रीम कोर्ट की दहलीज
गीतांजलि ने याचिका में दावा किया है कि उनके पति की गिरफ्तारी पूरी तरह अवैध है। उनका कहना है कि वांगचुक पर पाकिस्तान से संबंध रखने जैसे आरोप लगाए गए हैं, जबकि उन्होंने हमेशा लद्दाख और राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी है। याचिका में यह भी कहा गया है कि अब तक उन्हें हिरासत आदेश नहीं सौंपा गया, जो सीधे-सीधे कानून का उल्लंघन है।
सोचिए, एक ऐसा इंसान जिसे पूरी दुनिया "हिमालय का रक्षक" कहती रही, अचानक देशद्रोही के तौर पर पेश किया जा रहा है। क्या यह वाकई न्याय है?
राष्ट्रपति से गुहार
सिर्फ अदालत ही नहीं, बल्कि गीतांजलि ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपा। तीन पन्नों के पत्र में उन्होंने लिखा कि उनके पति को निशाना बनाया जा रहा है, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह लद्दाख की आवाज़ बन गए हैं।
गीतांजलि का कहना है –
"अगर कोई अनियंत्रित विकास गतिविधियों के खिलाफ बोलता है, तो क्या यह अपराध है? लद्दाख जैसे पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्र को बचाने की आवाज उठाना देश के खिलाफ जाना कैसे हो सकता है?"
24 सितंबर का विवाद
पूरा विवाद 24 सितंबर की उस घटना से जुड़ा है, जब लेह में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। इस हिंसा में चार लोगों की मौत हुई और कई घायल हो गए। इसके बाद ही वांगचुक को हिरासत में लिया गया और दो दिन बाद, यानी 26 सितंबर को राजस्थान की जोधपुर जेल भेज दिया गया।
लेकिन सवाल ये है – क्या इस हिंसा के लिए सिर्फ एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराना सही है?
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
यह पहला मौका नहीं है जब लद्दाख की जनता ने आवाज़ उठाई हो।
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1947 में स्वतंत्रता के बाद से ही लद्दाख अलग पहचान की मांग करता रहा है।
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2019 में धारा 370 हटने और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद, लोगों को लगा था कि उनकी मांग पूरी हो गई। लेकिन जल्द ही निराशा शुरू हो गई, क्योंकि उन्हें राजनीतिक अधिकार और संसाधनों पर नियंत्रण नहीं मिला।
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छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग इसलिए है ताकि लद्दाख की पारंपरिक संस्कृति और पर्यावरण को बचाया जा सके।
यानी यह संघर्ष सिर्फ सोनम वांगचुक का नहीं, बल्कि पूरी लद्दाखी पहचान का सवाल है।
जनता की प्रतिक्रिया
गांवों और सोशल मीडिया पर लोग इस गिरफ्तारी को लेकर बेहद आक्रोशित हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि वांगचुक को चुप कराने के लिए NSA का इस्तेमाल किया गया। वहीं, उनके समर्थकों का कहना है कि "अगर सोनम वांगचुक जैसे शांतिप्रिय कार्यकर्ता देश के लिए खतरा हैं, तो फिर असली खतरा कौन है?"
सवाल जो खड़े होते हैं
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क्या सरकार पर्यावरण की आवाज़ दबा रही है?
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क्या जनहित के मुद्दों को उठाना अब अपराध है?
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और क्या लद्दाख की असली समस्याएं गिरफ्तारी और आरोपों की भीड़ में दब जाएंगी?
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी सिर्फ एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं है। यह उस क्षेत्र की आवाज़ है, जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका और राष्ट्रपति से गुहार ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया है। अब देखना यह है कि अदालत और सरकार इस संवेदनशील मामले पर क्या रुख अपनाते हैं।
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