Kharsawan Tragedy: मिट्टी के घर की दीवार गिरने से मासूम की दर्दनाक मौत, परिवार पर टूटा कहर
खरसावां के आमदा ओपी क्षेत्र में कच्चे घर की दीवार गिरने से 3 साल की बच्ची की दर्दनाक मौत हो गई। बारिश से भीगी मिट्टी बनी हादसे की वजह। क्या है घटना की पूरी कहानी और क्यों अब भी कच्चे घर मौत का सबब बन रहे हैं, जानिए।
झारखंड के खरसावां जिले से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। आमदा ओपी क्षेत्र के कृष्णापुर पंचायत के गोलमायसाई टोला में बुधवार की देर रात अचानक एक पुराने मिट्टी के घर की दीवार गिर गई। इस दर्दनाक हादसे में तीन साल की मासूम श्रद्धा नापित की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि उसकी मां पूजा नापित को हल्की चोटें आईं।
रात का सन्नाटा अचानक चीख-पुकार में बदल गया। आसपास के लोग जब मौके पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मिट्टी की भारी दीवार के नीचे बच्ची दब चुकी थी। मां किसी तरह बाहर निकली, लेकिन मासूम की सांसें वहीं थम गईं।
आधी रात 1 बजे गिरी मौत की दीवार
परिवार के लोग बुधवार की रात हमेशा की तरह अपने कच्चे घर में सोए हुए थे। करीब रात 1 बजे अचानक जोर की आवाज हुई और घर की दीवार भरभराकर गिर गई। दुर्भाग्य से उसी समय श्रद्धा अपनी मां के पास सो रही थी।
पिता आनंद नापित उस समय घर पर मौजूद नहीं थे। वे किसी रिश्तेदार के यहां गए हुए थे। हादसे की जानकारी पाकर वे तुरंत लौटे, लेकिन तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था।
पुलिस और जनप्रतिनिधि मौके पर पहुंचे
सुबह होते ही घटना की खबर पूरे इलाके में फैल गई। आमदा ओपी प्रभारी रमन विश्वकर्मा घटनास्थल पर पहुंचे और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए सरायकेला भेज दिया।
इसके अलावा विधायक प्रतिनिधि नायडू गोप, पूर्व मुखिया दशरथ सोय, चिंतामणि महतो, पंचायत सदस्य रामलाल महतो और केशवलाल महतो भी मौके पर पहुंचे। उन्होंने परिजनों से मिलकर ढाढ़स बंधाया और हर संभव मदद का भरोसा दिलाया।
बारिश और नमी बनी मौत की वजह
ग्रामीणों के मुताबिक, पिछले कई दिनों से लगातार बारिश और नमी के कारण कच्चे मकान की नींव और दीवारें कमजोर हो गई थीं। दीवार का निचला हिस्सा गीला होने की वजह से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह आधी रात को अचानक गिर पड़ी।
परिवार इस पुराने घर में इसलिए रह रहा था क्योंकि सरकार की आवास योजना के तहत आनंद नापित को एक नया घर स्वीकृत हुआ है, लेकिन उसका निर्माण कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है। मजबूरी में परिवार उसी जर्जर मिट्टी के घर में रह रहा था।
इतिहास: झारखंड के कच्चे घर और हादसों का सिलसिला
झारखंड और उसके आसपास के इलाकों में कच्चे घर (मिट्टी के मकान) सदियों से ग्रामीण जीवन का हिस्सा रहे हैं। यह घर गर्मी में ठंडे और सर्दी में गर्म रहते हैं। लेकिन समय-समय पर बारिश, बाढ़ और नमी इन घरों को मौत के जाल में बदल देते हैं।
इतिहास गवाह है कि हर साल मानसून के दौरान झारखंड और बिहार के कई जिलों में मिट्टी के घर ढहने से लोगों की जान जाती है। सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना और राज्य स्तरीय योजनाओं का उद्देश्य यही है कि लोग सुरक्षित पक्के घरों में रह सकें। लेकिन धीमी रफ्तार और अधूरे निर्माण की वजह से अभी भी हजारों परिवार ऐसे कच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं।
गांव में पसरा मातम
गोलमायसाई टोला में इस हादसे के बाद शोक का माहौल है। गांव के लोग श्रद्धा की मासूमियत को याद कर भावुक हो रहे हैं। हर कोई यही कह रहा है कि अगर नया घर समय पर बन गया होता तो यह हादसा टल सकता था।
हादसा या सिस्टम की लापरवाही?
खरसावां की यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि एक बड़े सवाल की ओर इशारा करती है—
क्या सरकार की योजनाएं समय पर पूरी हों तो ऐसे हादसों से बचा जा सकता है?
क्या ग्रामीण क्षेत्रों में बारिश से पहले जर्जर मकानों का सर्वे और परिवारों का सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरण जरूरी नहीं?
तीन साल की श्रद्धा की मौत हमें यही सिखाती है कि सुरक्षित घर केवल सुविधा नहीं, बल्कि जीवन की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
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