ग़ज़ल - 26 - रियाज खान गौहर , भिलाई
जाने किस बात पर तिलमिला कर गऐ और इल्ज़ाम मुझ पे लगाकर गऐ क्या पता कौन सी बात उसने कही बस उसी बात पे वो लड़ाकर गऐ ....
ग़ज़ल
जाने किस बात पर तिलमिला कर गऐ
और इल्ज़ाम मुझ पे लगाकर गऐ
क्या पता कौन सी बात उसने कही
बस उसी बात पे वो लड़ाकर गऐ
अब तो उन पे यक़ीं मुझसे होता नहीं
वो तो सच्चे को झूठा बताकर गऐ
वो तो करते हमेशा बुरा ही बुरा
क्या पता आज कैसे भला कर गऐ
कल जो बिमार था आज चलने लगा
क्या पता कौन सी वो दवा कर गऐ
उनका इल्ज़ाम तो झूठा साबित हुआ
बे सबब आज फिर वो ख़ता कर गऐ
मुद्दतों से उन्हें ढ़ूंढ़ता फिर रहा
क्या खुद अपने को वो लापता कर गऐ
उनको भाता नहीं है रहें साथ हम
वो हमारे दिलों को जुदा कर गऐ
जिनको गौहर समझते थे अपना मगर
दाग दामन में उसके लगाकर गऐ
ग़ज़लकार
रियाज खान गौहर भिलाई
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