क्या गम उम्र भर ढोना पड़ेगा? - मनोज कुमार, उत्तर प्रदेश
क्या गम उम्र भर ढोना पड़ेगा?
क्या गम उम्र भर ढोना पड़ेगा?
आज रात आँखों में जल रही है
उस नरम बातों से दिल सिसक रहा है
अश्क ज़रिया बन के ढह रहा है
छोड़ दिया है जबसे बाहें
चेहरे है मेरी निगाहें
चरागों में धुआँ नज़र आता है
लौ नहीं...
ऐसा लगता है।
चाहत की इमारत ढह गई
हवा शामों की मद्धम हो गई
रंग फूलों से जुदा हो गए
न जाने कहाँ खो गए
ऐसा लगता है
क्या गम उम्र भर ढोना पड़ेगा?
--मनोज कुमार ,गोण्डा, उत्तर प्रदेश
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