अब सहन कहाँ, घुटन है दीवारों से - मनोज कुमार, गोण्डा उत्तर प्रदेश
अब सहन कहाँ, घुटन है दीवारों से इन अँधेरों से, इन तारों से भर भरके सिसकी रोता हूँ हर सिसकी में है नाम तेरा न है तू, न हैं काम तेरा.......
अब सहन कहाँ, घुटन है दीवारों से
अब सहन कहाँ, घुटन है दीवारों से
इन अँधेरों से, इन तारों से
भर भरके सिसकी रोता हूँ
हर सिसकी में है नाम तेरा
न है तू, न हैं काम तेरा
क्या है ये प्यार वार सरआँखों पर
क्या है ये अंजाम तेरा ?
अब जीना नहीं, है आसान कहीं
जीवन में भी, है विराम कई
लड़ती हैं जुदाई खुद मुझसे
रहमत की अर्जी क्या बोले
ये अपनी मर्जी क्या बोले
तुझे तनिक भी दया नहीं
दिल सर फोड़े और नाचे खूब
कितना जागा यूँ ही भागा,
तोते जैसा बोले खूब
हर घड़ी तेरी याद में फड़फड़ाया
तू सोई नींद भर ,मैं सो नहीं पाया
गरज के दर्द यूँ ही आता रहा
मैं चुपचाप सहता रहा
मुझे मारे मेरी कमी
देकर आँखों में नमी
मैं तुझे अपना कह नहीं पाया
दिल का हर एहसास छुपाया
मनोज कुमार,
गोण्डा उत्तर प्रदेश
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