रफ़्ता रातें - अर्चना जी, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

ऐ दुनिया वालों !  तुम कोई दवा बताओ। मेरे जिस्म के जर्रे - जर्रे में,जो ज़हर फैला है, उसे हटाने का, मुझे कोई हुनर सिखाओ।।....

Aug 31, 2024 - 17:39
Aug 31, 2024 - 17:54
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रफ़्ता रातें - अर्चना जी, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
रफ़्ता रातें - अर्चना जी, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

रफ़्ता रातें


ऐ दुनिया वालों ! 
तुम कोई दवा बताओ।
मेरे जिस्म के जर्रे - जर्रे में,जो ज़हर फैला है,
उसे हटाने का, मुझे कोई हुनर सिखाओ।।

गिर - गिर कर उठने में, मैं बड़ा नाम कर गई थी।
कयामत के किस्से को,अपने हौसलों से बदनाम कर गई थी।।

टूटा भरम मेरा,जब उस कयामत ने सर उठाई।
खार खा मुझी से, मेरे घर को दी जलाई।।

ऐसी लगी आग की,मेरा पूरा घर जल गया।
इस बेबस परिंदे की,उस प्रलय में पंख झुलस गया।।

उस कयामत को हटाने को,पूरी कायनात लग गई थी।
मैं दूर खड़ी दृश्य देख,बदहवास ठिठक गई थी।।

पत्थर भी पिघल गए,मेरे अश्क उधार ले।
फिज़ा खिजां हुई,मेरे ग़म की रात देख।।

खुले आसमां के नीचे,मेरी आंखें खुली रही।
मेरे दर्द की कहानी,चांद ने चांदनी से बैठ कही।।

दुश्मन भी मेरे दर्द देख,मांगे ख़ुदा से ये खुदाई।
महफूज़ रखना इस मंज़र से,देना इस दर्द से दुहाई।।


स्वरचित मौलिक
अर्चना, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।