ग़ज़ल  - 10 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

वो दिन हो की रात इक पहेली है जिंदगी,  तेरे बगैर कितनी अकेली है जिंदगी।  ........

Aug 29, 2024 - 10:30
Aug 29, 2024 - 10:37
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ग़ज़ल  - 10 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
ग़ज़ल  - 10 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

ग़ज़ल  

वो दिन हो की रात इक पहेली है जिंदगी, 
तेरे बगैर कितनी अकेली है जिंदगी।  

होता है गर खिलाफ ज़माना तो होने दे, 
मैं हूं तिरा तू मेरी सहेली है जिंदगी।  

गुजारी तमाम उम्र तुझे ना समझ सका, 
तू ही बता तू कैसी पहेली है जिंदगी।  

देखा ही नहीं तुमने मोहब्बत की नजर से, 
जूही कहीं पे, चंपा चमेली है जिंदगी।  

हैरान हूं कि बैठी है ओढ़े उदासियां, 
रिश्तों की भीड़ में भी अकेली है जिंदगी।   

क्या मुंह ले के चला है, तू रब के हुजूर में, 
नौशाद, तेरी मैली कुचेली है जिंदगी।   

नौशाद अहमद सिद्दीकी, 

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।