ग़ज़ल  - 9 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

दिल मेरा उस पर कभी फिसला नहीं है,  चांद के जैसा अगर चेहरा नहीं है।  ..........

Aug 23, 2024 - 18:00
Aug 23, 2024 - 17:45
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ग़ज़ल  - 9 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
ग़ज़ल  - 9 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

ग़ज़ल  

दिल मेरा उस पर कभी फिसला नहीं है, 
चांद के जैसा अगर चेहरा नहीं है।  

चांद तारों से कोई रिश्ता नहीं है, 
इसका मतलब कम मेरा रुतबा नहीं है।  

घर में आते ही उबल पड़ती हैं बेगम,
शाक सब्जी की तुम्हें चिंता नहीं है।  

देख ली तुमसे मोहब्बत करके हमने, 
हाथ रुसवा हो के कुछ आया नहीं है।  

किसको दूं आवाज, किसकी राह देखूं, 
शहरे उल्फत में कोई अपना नहीं है।  

दर बदर का हो के आखिर रह गया, नौशाद, 
जिसके सर मां बाप का साया नहीं है।  

नौशाद अहमद सिद्दीकी, 

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।