Bihar Election 2025: RJD को 140 सीटें मिलते ही INDI गठबंधन का धमाका! क्या तेजस्वी यादव और मुकेश साहनी मिलकर नीतीश-चिराग का खेल बिगाड़ देंगे?
क्या बिहार चुनाव 2025 में RJD, कांग्रेस, लेफ्ट और VIP का नया सीट शेयरिंग फॉर्मूला NDA को धूल चटा देगा? तेजस्वी यादव की रणनीति से बिहार की सियासत में भूचाल!

पटना, 25 सितंबर 2025: बिहार की सियासत में एक बार फिर तूफान आ गया है। इंडिया गठबंधन (INDI alliance) ने विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सीट शेयरिंग फॉर्मूला फाइनल कर लिया है, जो आरजेडी (RJD) के लिए किसी सौगात से कम नहीं। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, RJD को 140 सीटें, कांग्रेस को 52, लेफ्ट पार्टियों को 35 और वीआईपी (VIP) को 15 सीटें आवंटित की गई हैं। कुल 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में यह फॉर्मूला लगभग तय हो चुका है, और एक सीट पर अंतिम फैसला बाकी है। यह खबर राजनीतिक गलियारों में आग की तरह फैल गई है, क्योंकि इससे तेजस्वी यादव की अगुवाई वाली RJD की पकड़ मजबूत होती नजर आ रही है।
बिहार चुनाव 2025 की यह सीट शेयरिंग न सिर्फ गठबंधन की एकजुटता का प्रतीक है, बल्कि पिछले लोकसभा चुनाव 2024 की हार से सबक लेते हुए एक मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकती है। याद कीजिए, 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 30 सीटें जीत ली थीं, जबकि इंडिया गठबंधन को महज 9-10 सीटें ही नसीब हुईं। RJD को 4, कांग्रेस को 3 और लेफ्ट को 2 सीटें मिली थीं। लेकिन अब विधानसभा स्तर पर RJD की 140 सीटों वाली हिस्सेदारी से साफ है कि तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद यादव की जोड़ी ने गठबंधन में अपनी बादशाहत कायम रखी है। मुकेश साहनी की वीआईपी को 15 सीटें देकर गठबंधन ने यादव-मुस्लिम-एबसी (OBC) वोट बैंक को और मजबूत करने की कोशिश की है।
बिहार चुनाव का इतिहास: जंगलों से संसद तक की सियासत
बिहार की राजनीति हमेशा से ही उथल-पुथल भरी रही है। 1950 में आजादी के बाद पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ, जब कांग्रेस ने 239 में से 234 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया। श्री कृष्ण सिन्हा पहले मुख्यमंत्री बने। लेकिन 1960 के दशक से ही बिहार में अस्थिरता का दौर शुरू हो गया। 1967 के चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (SSP) और जनसंघ ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी। इसके बाद 1970 के दशक में इंदिरा गांधी की इमरजेंसी ने बिहार को हिला दिया। जयप्रकाश नारायण का आंदोलन बिहार से ही शुरू हुआ, जो पूरे देश में फैल गया।
1980 के दशक में लालू प्रसाद यादव का उदय हुआ। 1990 में जनता दल की जीत के बाद लालू मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने पिछड़ों की राजनीति को नई दिशा दी। लेकिन चारा घोटाले ने उनकी सरकार को गिरा दिया। 1997 में राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। 2000 के दशक में नीतीश कुमार का बोलबाला शुरू हुआ। 2005 के चुनाव में एनडीए (बीजेपी-जेडीयू) ने 143 सीटें जीतकर सत्ता हासिल की। नीतीश ने 'सुशासन' का नारा दिया और बिहार को पटरी पर लाने का दावा किया। लेकिन 2010 के चुनाव में भी एनडीए ने 206 सीटें जीत लीं।
2015 का चुनाव बिहार सियासत का टर्निंग पॉइंट था। महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-जेडीयू) ने 178 सीटें जीतकर एनडीए को साफ कर दिया। तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने। लेकिन 2017 में नीतीश ने फिर पलटी मारी और बीजेपी के साथ चले गए। 2020 के चुनाव में एनडीए ने 125 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन को 110। जेडीयू को 43, बीजेपी को 74, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) को 4 और वीआईपी को 4 सीटें मिलीं। RJD सबसे बड़ी पार्टी बनी 75 सीटों के साथ, लेकिन सरकार एनडीए की बनी। 2022 में नीतीश ने फिर महागठबंधन का रुख किया, लेकिन 2024 लोकसभा में एनडीए की वापसी हुई।
यह इतिहास बताता है कि बिहार में गठबंधन टूटना और बनना आम बात है। कुल 17 विधानसभा चुनाव हुए हैं, और 8 बार राष्ट्रपति शासन लगा। बिहार की 243 सीटों में से 38 आरक्षित (SC/ST) हैं, और वोटर बेस में यादव (14%), मुस्लिम (17%), कोइरी-कुर्मी (OBC 15%) और दलित (16%) का बड़ा रोल है। RJD का फोकस हमेशा से सोशल जस्टिस पर रहा है, जबकि नीतीश का सुशासन। अब 2025 में बिहार चुनाव 2025 के मैदान में RJD की 140 सीटें इस इतिहास को नया मोड़ दे सकती हैं।
2024 लोकसभा चुनाव: एनडीए की जीत, लेकिन इंडिया की चिंगारी
2024 के लोकसभा चुनाव बिहार के लिए सबक की किताब थे। 19 अप्रैल से 1 जून तक 7 चरणों में हुए इस चुनाव में कुल 40 सीटें दांव पर थीं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, एनडीए ने 30 सीटें जीतीं: बीजेपी को 12, जेडीयू को 12, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) को 5 और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को 1। दूसरी तरफ, इंडिया गठबंधन को 9 सीटें मिलीं: RJD को 4 (सीतामढ़ी, मधुबनी, हायाघाट? वेट, सासाराम, वैशाली, आदि), कांग्रेस को 3 (किशनगंज, कटिहार, सासाराम? ) और लेफ्ट (CPI-ML) को 2।
वोट शेयर में भी एनडीए आगे था: बीजेपी 20.62%, जेडीयू 18.57%, जबकि RJD 22.14% के साथ टॉप पर रही, लेकिन सीटों में पिछड़ गई। तेजस्वी यादव ने कैंपेन में 'नौकरी दो, बिहार बचाओ' का नारा दिया, लेकिन नीतीश-चिराग की जोड़ी ने EBC (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) को लामबंद कर दिया। मुकेश साहनी की वीआईपी ने एनडीए के साथ रहकर 1 सीट (महराजगंज) जीती, लेकिन अब इंडिया में शामिल होकर 15 सीटें मांग रही है। यह स्विचओवर बिहार चुनाव 2025 के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है।
लोकसभा हार के बावजूद RJD का वोट शेयर मजबूत रहा, जो विधानसभा में फायदा देगा। विशेषज्ञों का मानना है कि 2024 की हार से इंडिया गठबंधन ने सीखा है – ज्यादा पार्टियों को शामिल कर वोट कंसोलिडेशन। लेफ्ट को 35 सीटें देकर दलित-मजदूर वोट पक्का। कांग्रेस को 52 सीटें देकर केंद्र की विपक्षी आवाज मजबूत।
तेजस्वी यादव: RJD का नया चेहरा, बिहार का भविष्य?
तेजस्वी यादव बिहार चुनाव 2025 की जंग के हीरो हैं। लालू के बेटे, लेकिन अपनी मेहनत से ऊंचाई चढ़े। 2015 में उपमुख्यमंत्री बने, 2020 में विपक्ष के नेता। 2024 में उन्होंने 23 रैलियां कीं, जहां युवाओं को निशाना बनाया। 'माय फर्स्ट बिहार' कैंपेन से वे सोशल मीडिया पर वायरल हुए। RJD को 140 सीटें दिलाने में उनकी भूमिका अहम रही। सूत्र बताते हैं कि तेजस्वी ने खुद मुकेश साहनी से मीटिंग की, जहां वीआईपी को निषाद वोट बैंक के लिए 15 सीटें दी गईं।
तेजस्वी की रणनीति साफ है: जाति जनगणना, 10 लाख नौकरियां और महंगाई पर हमला। वे कहते हैं, "बिहार के युवा इंतजार नहीं करेंगे, अब समय आ गया है बदलाव का।" RJD कार्यकर्ता मानते हैं कि तेजस्वी की वजह से गठबंधन मजबूत हुआ। लेकिन चुनौती भी है – लालू की छवि और परिवारवाद के आरोप। फिर भी, 2025 में वे मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं।
मुकेश साहनी और वीआईपी: निषादों का मसीहा, गठबंधन का नया साथी
मुकेश साहनी, जिन्हें 'मछली वाला बाबू' कहा जाता है, बिहार की OBC राजनीति के उभरते सितारे हैं। 2020 में वीआईपी ने 4 सीटें जीतीं, लेकिन 2024 में एनडीए के साथ रहकर सीमित सफलता मिली। अब इंडिया में शामिल होकर 15 सीटें पाकर साहनी ने निषाद (मल्लाह) समुदाय को मजबूत संदेश दिया। निषादों की 4% आबादी है, जो दरभंगा, सीतामढ़ी जैसे इलाकों में फैली है। साहनी कहते हैं, "हम गरीबों के हक के लिए लड़ेंगे, NDA ने धोखा दिया।"
वीआईपी को 15 सीटें देकर गठबंधन ने EBC वोट को टारगेट किया। लेफ्ट को 35 सीटें (CPI, CPI-ML, CPI-M) देकर मजदूर-दलित लाइन पक्की। CPI-ML के दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा, "यह फॉर्मूला वास्तविक है, कांग्रेस को यथार्थवादी होना पड़ेगा।" कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं, जो 2020 की 70 से कम हैं, लेकिन राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' से ऊर्जा मिली।
बिहार चुनाव 2025: चुनौतियां और संभावनाएं
यह सीट शेयरिंग एनडीए के लिए खतरे की घंटी है। नीतीश कुमार की जेडीयू और चिराग पासवान की LJP(RV) के बीच दरार की खबरें हैं। बीजेपी 100+ सीटें चाहती है, लेकिन गठबंधन में तनाव। वोटर टर्नआउट 2020 में 57% था, 2025 में महिलाओं का रोल बढ़ेगा – नीतीश की 35% आरक्षण स्कीम पर सवाल।
विशेषज्ञ कहते हैं, RJD का 140 सीटों वाला दांव अगर वोट में बदल गया, तो महागठबंधन 130+ सीटें जीत सकता है। लेकिन पलायन, बेरोजगारी और बाढ़ जैसे मुद्दे फैसला करेंगे। तेजस्वी-मुकेश की जोड़ी यादव-मुस्लिम-निषाद को एकजुट करेगी, जबकि लेफ्ट मजदूरों को। कांग्रेस का रोल ब्रिज का होगा।
अंत में, बिहार चुनाव 2025 इंडिया गठबंधन के लिए रिवेंज का मौका है। 2024 की हार भूलकर नया अध्याय लिखा जा रहा। क्या यह फॉर्मूला इतिहास रचेगा? समय बताएगा, लेकिन सियासत के मैदान में हलचल मच गई है। बिहार के वोटर अब फैसला लेंगे – सुशासन या सोशल जस्टिस?
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