मेरी बेटी तूने ,क्यों कर लिया डिसाइड - एन. के.सिक्केवाल | काव्य स्पर्धा 2024

यह कविता सत्य घटना पर आधारित मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है। कक्षा दसवीं की छात्रा दीक्षा समुद्र ने वेलेंटाइन डे के दिन दुपट्टे को गले में बांधकर आत्महत्या कर ली थी..उक्त समाचार दैनिक भास्कर में प्रकाशित हूआ था और मेरी कविता का जन्म.....

Oct 14, 2024 - 20:48
Oct 14, 2024 - 21:07
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मेरी बेटी तूने ,क्यों कर लिया डिसाइड - एन. के.सिक्केवाल | काव्य स्पर्धा 2024
मेरी बेटी तूने ,क्यों कर लिया डिसाइड - एन. के.सिक्केवाल | काव्य स्पर्धा 2024

मेरी बेटी तूने ,क्यों कर लिया डिसाइड

मेरी बेटी तूने ,क्यों कर लिया डिसाइड
अचानक करने का सुसाइड
इतनी सी बात पर कि 
वेलेंटाइन डे के दिन जिसको आना था,नही आया
और उसका इतना सा भाव तुझको नही भाया
फूल गुलाब का उसे ,तुम्हारे हाथ में थमाना था
और इस तरह वेलेंटाइन डे मनाना था
मैं सोचता हूं यदि, "वेल इन टाइम"
तुमने गुलाब के फूल को 
अपनी मां के हाथों में दे दिया होता.
पिता की बूढ़ी आंखो में चमक
आ जाती
भाई के चेहरे पर भी मुस्कान
समा जाती
और इस तरह तुम वेलेंटाइन डे मना जाती
लेकिन तूने ये क्या कर दिया ?
मां के दुपट्टे को गले में बांध
नन्हे कोमल हाथों से पंखे को थाम लिया
तुम संस्कारों में पली थी
भावों के झूलों पर झूली थी
फिर भी जो तुमने किया
उसमे "खुद की खुशी थी" ?
तुमने सोचा था कभी...
तुम्हारी खुशी के लिए 
कितने सपने संजोए होंगे पिता ने
कितनी कल्पनाएं की होंगी आगत भविष्य की तुम्हारे
अनंत की ऊंचाई को छू लेगी मेरी बेटी
इसी आशा में दिन रात पंख तराशे होंगे तुम्हारे
तुम... इन हाथों से रेल चला सकती थी
पकड़ बंदूक को दुश्मन के छक्के छुड़ा सकती थी
तुम सक्षम थी बदल सकने में अपने परिवेश को
और पाश्चात्य संस्कृति के बिगड़े हुए वेश को
तुम वसंत को हंस कर बुला सकती थी
नेह से बंजारों में भी फूल खिला सकती थी
तुम्हारे हाथों  का स्पर्श पाकर तितलियां
भौरो से भी मन की बातें बुला सकती थी
तुम कतार की पहली गिनती बन सकती थी
ऊंचाई पर ले जाने वाली सीढ़ी बन सकती थी
तुम खुद विशाल "समुद्र" थी संभावनाओं का
कई नदियों का आश्रय स्थल बन सकती थी
लेकिन तुमको न जानें क्यों  ?
स्टूल पर चढ़ते वक्त,पिता का कंधा याद नही आया
दुपट्टे को जब पकड़ा होगा
मां का अमोल स्पर्श याद नही आया
जब गांठ बांधी होगी पंखे से
भाई की कलाई का बंधन याद नही आया
खुदकुशी का विचार आया था तो
भावनाओं पर अपनी काबू कर लेती
गुमसुम न बैठी रहती अकेले बेटी
माता ,पिता दोस्तों से ही बातें कर लेती
खैर......
जो तूने किया अच्छा नहीं किया
घर आंगन को सूना कर दिया....
तेरी याद खुशबू की तरह महकती रहेगी
तेरी सूरत तुलसी चौरा सी दमकती रहेगी
भले ही छिटक कर दूर हो गई हो गोदी से
पिता के दिल में अपनी मुनिया सदा बसती रहेगी...
सदा बसती रहेगी....


एन. के.सिक्केवाल
दुर्ग, छत्तीसगढ़

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।