Latur Tragedy: परीक्षा छोड़ छात्रावास पहुंची छात्रा, फिर जो हुआ उसने सबको झकझोर दिया
लातूर के सरकारी महिला पॉलिटेक्निक कॉलेज में एक होनहार छात्रा ने परीक्षा के बीच छात्रावास लौटकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। शुरुआती जांच में परीक्षा के दबाव को कारण माना जा रहा है, लेकिन पुलिस अन्य एंगल्स से भी जांच कर रही है।

लातूर से एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे शिक्षा जगत को झकझोर दिया है। एक 17 वर्षीय होनहार छात्रा ने परीक्षा के दौरान ही अपने कॉलेज के छात्रावास में फांसी लगाकर जान दे दी। यह घटना सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि उन अनकहे दबावों की कहानी है जो हमारे शिक्षा तंत्र में गहराई तक जड़े हुए हैं।
घटना की शुरुआत तब हुई जब छात्रा, जो कंप्यूटर इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स के प्रथम वर्ष में पढ़ रही थी, अपनी परीक्षा के बीच अचानक परीक्षा हॉल से उठकर छात्रावास लौट आई। मंगलवार को दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक अंतिम पेपर होना था, लेकिन वह करीब 3 बजे ही कमरे में लौट आई। वहां उसने अपने ही दुपट्टे से फांसी लगाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।
छात्रा की पहचान नांदेड़ जिले के मंग्याल गांव की निवासी के रूप में हुई है। वह सरकारी महिला पॉलिटेक्निक कॉलेज, लातूर में रह रही थी और छात्रावास में ही ठहरी हुई थी। जब परीक्षा खत्म होने के बाद अन्य छात्राएं हॉस्टल लौटीं, तब उन्होंने कई बार दरवाज़ा खटखटाया लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। जब खिड़की से झांका गया, तो सभी के होश उड़ गए – छात्रा फंदे से लटकी हुई थी।
फौरन पुलिस को सूचना दी गई और शव को लातूर के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। पुलिस की प्रारंभिक जांच में अनुमान है कि छात्रा पर परीक्षा का मानसिक दबाव था। हालांकि, पुलिस का यह भी कहना है कि वह अन्य कोणों से भी जांच कर रही है और मृतका के माता-पिता से पूछताछ के बाद ही वास्तविक कारण स्पष्ट हो सकेगा।
इस छात्रा का शैक्षणिक रिकॉर्ड बताता है कि वह कितनी मेधावी थी। 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में उसने 96 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे। उसकी योग्यता के आधार पर ही उसे इस प्रतिष्ठित संस्थान में कंप्यूटर इंजीनियरिंग डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश मिला था। कॉलेज प्रशासन के अनुसार, पहले सेमेस्टर की कुछ परीक्षाएं लंबित थीं और वह वर्तमान में दूसरे सेमेस्टर की परीक्षाएं दे रही थी।
कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य सूर्यकांत राठौड़ ने बताया, "कॉलेज के कर्मचारियों से मुझे इस दुखद घटना की जानकारी मिली। छात्रा की कुछ पिछली परीक्षाएं छूट गई थीं, लेकिन वह पढ़ाई में काफी अच्छी थी। मैं बेंगलुरु में हूँ, इसलिए तत्काल वहां नहीं पहुंच सका।"
यह घटना ना केवल छात्रा के परिवार के लिए बल्कि पूरे शैक्षणिक समाज के लिए एक चेतावनी है। क्या हमारा शिक्षा तंत्र इतना कठोर हो गया है कि एक होनहार किशोरी परीक्षा के दबाव में अपनी जान दे दे? क्या कॉलेज प्रशासन को पहले से कोई संकेत नहीं मिला? क्या कोई काउंसलिंग व्यवस्था नहीं थी?
इतिहास गवाह है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल अंक अर्जन नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से मज़बूत इंसान तैयार करना होता है। लेकिन आज जब हर परीक्षा को जीवन-मरण का प्रश्न बना दिया गया है, तब ऐसी घटनाएं बार-बार हमें सोचने पर मजबूर कर रही हैं।
जरूरत है एक ऐसे माहौल की जहाँ विद्यार्थी केवल मार्क्स की दौड़ में न उलझें, बल्कि मानसिक रूप से भी सुरक्षित और समर्थ महसूस करें। मानसिक स्वास्थ्य को शिक्षा नीति का अनिवार्य हिस्सा बनाना अब विलंब नहीं, एक अनिवार्यता है।
लातूर की इस घटना ने फिर एक बार ये सवाल खड़ा किया है – क्या हम अपने बच्चों को सिर्फ सफल बना रहे हैं या उन्हें मानसिक रूप से भी तैयार कर रहे हैं?
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