Garhwa Agitation: वन अधिकारियों को बनाया बंधक! गढ़वा के केवाल दामर गांव में विस्थापितों का खौफनाक विरोध, डीएफओ-रेंजर को 3 किमी पैदल चलाकर खेल मैदान तक ले गए, मुआवजे को लेकर ग्रामीणों का बढ़ता आक्रोश, बड़ी संख्या में पुलिस पहुंची मौके पर!
झारखंड के गढ़वा जिले के रंका थाना क्षेत्र के केवाल दामर गांव में मंडला डैम विस्थापितों ने पुनर्वास सर्वेक्षण कर रहे वन विभाग के अधिकारियों को बंधक बना लिया। डीएफओ समेत तीन अधिकारियों को करीब 3 किमी पैदल चलाकर ले जाया गया। मुआवजा और पुनर्वास की समस्याओं से नाराज ग्रामीणों ने यह कदम उठाया। पुलिस की मध्यस्थता से मामला सुलझा।
विकास की नींव पर जब भी कोई बड़ी परियोजना खड़ी होती है, तो अक्सर स्थानीय लोगों की जिंदगियां विस्थापन की भेंट चढ़ जाती हैं। झारखंड के गढ़वा जिले के रंका थाना क्षेत्र के केवाल दामर गांव में आज एक ऐसा ही विस्फोटक माहौल देखने को मिला, जहां वर्षों से लंबित पुनर्वास और मुआवजे की समस्या से नाराज ग्रामीणों ने सीधे सरकारी अधिकारियों को ही बंधक बना लिया। यह घटना दिखाती है कि जनता का आक्रोश किस कदर भड़क चुका है।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में बड़े बांधों और परियोजनाओं के कारण विस्थापन हमेशा एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। मंडल डैम विस्थापितों की समस्या भी इसी संघर्ष की कहानी का एक हिस्सा है, जहां लोगों को अपनी जमीन और घर छोड़ने के बाद भी वर्षों तक न्याय और अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है। डीएफओ जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को बंधक बनाना इस बात का प्रतीक है कि प्रशासन की उदासीनता के कारण अब ग्रामीणों का सब्र जवाब दे चुका है।
पुनर्वास सर्वेक्षण बना आक्रोश की चिंगारी
सोमवार को वन विभाग के अधिकारी, जिनमें डीएफओ, रेंजर और वनरक्षी शामिल थे, मंडल डैम विस्थापितों के पुनर्वास सर्वेक्षण कार्य में जुटे थे। सर्वेक्षण का कार्य चल ही रहा था कि बड़ी संख्या में ग्रामीण मौके पर पहुंच गए।
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गुस्सा भड़का: ग्रामीणों ने लंबे समय से लंबित मुआवजे की राशि और पुनर्वास में हो रही देरी को लेकर नाराजगी जताई। गुस्से से भरे ग्रामीणों ने तुरंत तीनों सरकारी अधिकारियों को अपनी हिरासत में ले लिया।
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3 किमी की पदयात्रा: बंधक बनाए गए अधिकारियों को आक्रोशित ग्रामीणों ने करीब तीन किलोमीटर पैदल चलकर रंका थाना क्षेत्र के बलिगढ़ खेल मैदान तक ले गए और वहीं पर उन्हें बंधक बना लिया।
तीन थानों की पुलिस ने कराया समझौता
वन अधिकारियों को बंधक बनाए जाने की जानकारी मिलते ही प्रशासन में अफरा-तफरी मच गई। रंका, रामकंडा और भंडारिया थाना की बड़ी संख्या में पुलिस बल तुरंत बलिगढ़ खेल मैदान पहुंचा।
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मध्यस्थता: पुलिस ने आक्रोशित ग्रामीणों के साथ लंबी बातचीत की और उनकी समस्याओं को उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने का भरोसा दिया। गहन समझौते के बाद ही ग्रामीण अधिकारियों को सुरक्षित मुक्त करने पर राजी हुए।
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मूल समस्या: बताया जा रहा है कि विस्थापन और मुआवजा से जुड़ी समस्याओं को लेकर ग्रामीण लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन जब उनकी सुनाई नहीं हुई, तो उन्होंने विरोध का यह चरम रास्ता अपनाया।
यह घटना राज्य प्रशासन के लिए एक कठोर चेतावनी है कि जनता की समस्याओं को लंबे समय तक अनदेखा नहीं किया जा सकता है। अब देखना यह है कि क्या प्रशासन सिर्फ बंधकों को मुक्त कराने के बाद मामले को दबा देता है, या वास्तव में विस्थापितों की समस्याओं का स्थायी समाधान खोजता है।
आपकी राय में, मंडल डैम जैसे बड़े परियोजनाओं में विस्थापितों के पुनर्वास और मुआवजे से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए प्रशासन को कौन से दो सबसे प्रभावी और पारदर्शी कदम उठाने चाहिए?
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